जावेद अख्तर

'जख्म कैसे भी हों कुछ रोज़ में भर जाते हैं', जावेद अख्तर के चुनिंदा शेर

Devinder Kumar
Nov 04, 2023

प्रसिद्ध गीतकार

गीतकार जावेद अख्तर अपनी शेरों-शायरी के लिए प्रसिद्ध हैं. उन्हें पद्म भूषण और पद्म श्री पुरस्कार मिल चुका है.

दुश्मन से भी खुद्दारी

मुझे दुश्मन से भी ख़ुद्दारी की उम्मीद रहती है किसी का भी हो सर क़दमों में सर अच्छा नहीं लगता

कोई इम्तिहान बाक़ी

अभी ज़मीर में थोड़ी सी जान बाक़ी है अभी हमारा कोई इम्तिहान बाक़ी है

खो गई वो चीज़

कभी जो ख़्वाब था वो पा लिया है मगर जो खो गई वो चीज़ क्या थी

दास्तान बाक़ी

ज़रा सी बात जो फैली तो दास्तान बनी वो बात ख़त्म हुई दास्तान बाक़ी है

अब तल्ख़ी नहीं

हमारे दिल में अब तल्ख़ी नहीं है मगर वो बात पहले सी नहीं है

मैं कोई और हूँ

छोड़ कर जिस को गए थे आप कोई और था अब मैं कोई और हूँ वापस तो आ कर देखिए

दर्द के फूल

दर्द के फूल भी खिलते हैं बिखर जाते हैं ज़ख़्म कैसे भी हों कुछ रोज़ में भर जाते हैं

तू तो मत कह

तू तो मत कह हमें बुरा दुनिया तू ने ढाला है और ढले हैं हम

अच्छा नहीं लगता

ग़लत बातों को ख़ामोशी से सुनना हामी भर लेना बहुत हैं फ़ायदे इस में मगर अच्छा नहीं लगता

VIEW ALL

Read Next Story