केएम करिअप्पा पहले भारतीय सैन्य अधिकारी थे, जिन्हें आजाद भारतीय सेना की कमान मिली थी. कोडंडेरा करिअप्पा का जन्म 1899 में कर्नाटक में हुआ था.
उन्हें लोग किप्पर के नाम से भी जानते हैं. बताया जाता है कि यह नाम एक ब्रिटिश अफसर की पत्नी ने दिया था. जिन्हें करिअप्पा नाम लेने में बहुत दिक्कत होती थी.
जनरल करियप्पा के मिलिट्री करियर की शुरुआत 1919 में हुई. करिअप्पा दुनिया का नक्शा बदल देने वाली कई लड़ाईयों का हिस्सा रहें. 1942 में वो पहले भारतीय अफसर बने जिन्हें यूनिट का कमांड मिला था. वहीं 1947 में वो पहले भारतीय थे जिन्हें इंपीरियल डिफेंस कॉलेज, यूके के ट्रेनिंग कोर्स में चुना गया था.
अमेरिका के राष्ट्रपति हैरी एस. ट्रूमैन ने उन्हें 'Order of the Chief Commander of the Legion of Merit' से सम्मानित किया.
जनरल करिअप्पा ने कई साल भारत का नेतृत्व किया. उन्होंने साल 1947 में हुए भारत-पाक युद्ध में पश्चिमी सीमा पर भारतीय सेना का नेतृत्व भी किया. उनकी सेवाओं के लिए भारत सरकार ने साल 1986 में उन्हें 'Field Marshal' का पद प्रदान किया.
1965 के भारत-पाक युद्ध में पाकिस्तानी आर्मी ने हमारी एयरफोर्स का विमान गिरा दिया. पायलट की पहचान हुई तो PAK में हड़कंप मच गया. क्योंकि पायलट भारत के पूर्व सेनाध्यक्ष का बेटा था. फौरन राष्ट्रपति जनरल अयूब ख़ां ने जनरल करिअप्पा को संदेश भेजते हुए कहा, 'पाकिस्तान, उसे तुरंत छोड़ रहा है'. इस पर उन्होंने कहा, ‘वो मेरा नहीं भारत का बेटा है या तो सारे बंदी रिहा करो या किसी को नहीं. पायलट को स्पेशल ट्रीटमेंट मत दो.’
जनरल करिअप्पा से पहले ब्रिगेडियर नाथू सिंह को भारत का पहला कमांडर-इन-चीफ पर विचार चल रहा था. 1946 में तत्कालीन अंतरिम सरकार में रक्षा मंत्री रहे बलदेव सिंह ने नाथू सिंह ने इसकी पेशकश की थी. लेकिन उन्होंने उस प्रस्ताव को ठुकरा दिया था क्योंकि उनका मानना था कि सीनियर होने के नाते करिअप्पा का उस पद पर दावा पहले बनता था.
के.एम. करिअप्पा साल 1953 में सेना से रिटायर हो गए. उन्होंने जिस ब्रिटिश आर्मी चीफ से चार्ज लिया था उसका नाम जनरल रॉय बूचर था.