दिल्ली का लौह स्तंभ 1600 साल से भी ज्यादा पुराना है. इसमें आज तक जंग नहीं लगी है. कुतुब मीनार परिसर में मौजूद लौह स्तंभ ने सदियों से मौसम की हार मार झेली है.
आमतौर पर लोहे या मिश्रित लौह से बने ढांचों पर जंग लग जाती है. ऐसा लोहे के ऑक्सीकरण की वजह से होता है.
दिल्ली का लौह स्तंभ आज भी वैसा ही है, जैसा तब था जब इसका निर्माण किया गया था. IIT कानपुर के एक्सपर्ट्स ने 2003 में लौह स्तंभ में जंग न लगने का रहस्य सुलझा लिया था.
वैज्ञानिकों के अनुसार, दिल्ली का लौह स्तंभ मुख्य रूप से गढ़े लोहे से बना है. इसमें फॉस्फोरस की मात्रा अधिक (लगभग 1%) है. आधुनिक लोहे के विपरीत इसमें सल्फर और मैग्नीशियम की कमी है.
प्राचीन कारीगरों ने 'फोर्ज-वेल्डिंग' तकनीक का यूज किया था. उन्होंने लोहे को गर्म किया और पीटा, जिससे फास्फोरस की उच्च मात्रा बरकरार रही.
लौह स्तंभ की सतह पर 'मिसावाइट' की एक पतली परत भी पाई गई है, जो लोहा, ऑक्सीजन और हाइड्रोजन का एक यौगिक है.
दिल्ली के लौह स्तंभ की ऊंचाई 7.2 मीटर है. लोहे का यह खंभा छह टन वजनी है. इसे 5वीं सदी में चंद्रगुप्त द्वितीय के समय में बनवाया गया था.