धरती को ठंडा रखने के लिए वैज्ञानिकों ने किया ऐसा Secret Test

Mohit Chaturvedi
Apr 08, 2024

वैज्ञानिकों का सीक्रेट टेस्ट

न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका के वैज्ञानिकों ने धरती को ठंडा करने के लिए एक सीक्रेट टेस्ट किया. इस टेस्ट में उन्होंने सूर्य की कुछ किरणों को वापस अंतरिक्ष में भेजने की कोशिश की.

बादलों को चमका रहे

इस प्रयोग में वैज्ञानिकों ने क्लाउड ब्राइटनिंग टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया है. इस टेक्नोलॉजी में बादलों को ब्राइट बनाया जाता है ताकि वे सूर्य की रोशनी के एक छोटे से हिस्से को रिफ्लेक्ट कर सकें, जिससे तापमान कम हो जाता है.

कब किया गया टेस्ट

टेस्ट 2 अप्रैल को किया गया था. ये टेस्ट "CAARE" नाम के प्रोजेक्ट का हिस्सा था. वाशिंगटन यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स ने इस प्रोजेक्ट में सैन फ्रांसिस्को के एक पुराने एयरक्राफ्ट कैरियर से समुद्र के नमक के बहुत छोटे कणों को आसमान में छोड़ा था.

इस टेक्नोलॉजी के पीछे का आइडिया

ये तकनीक बादलों को एक बड़े शीशे की तरह इस्तेमाल करने की कोशिश है. इस तरह बादल सूरज की रोशनी को वापस अंतरिक्ष में भेज देंगे. इस आइडिया को सबसे पहले 1990 में ब्रिटिश भौतिक विज्ञानी जॉन लाथम ने पेश किया था.

कैसे काम करती है टेक्नोलॉजी

ये तकनीक बहुत सारी छोटी-छोटी बूंदों के हिसाब से काम करती है. जितनी ज़्यादा छोटी बूंदें होंगी, उतनी ही ज्यादा सूर्य की रोशनी वापस अंतरिक्ष में जाएगी. इसीलिए समुद्री पानी की बहुत छोटी बूंदों का छिड़काव करने से सूर्य की किरणें वापस अंतरिक्ष में चली जाएंगी और धरती ठंडी हो सकेगी.

कितना है पार्टिकल साइज

ये तकनीक बहुत छोटे कणों पर निर्भर करती है. जितने कण ज्यादा छोटे होंगे, उतना ही अच्छा! वैज्ञानिकों को बाल के 1/700वें हिस्से जितने छोटे कण चाहिए, और हर सेकेंड में ऐसे खरबों कणों का छिड़काव करना होगा.

ग्लोबल वॉर्मिंग पर कितना पड़ेगा असर

वैज्ञानिक धरती के बढ़ते तापमान को कम करने के लिए इस तकनीक को आजमा रहे हैं. ज्यादा CO2 गैस की वजह से धरती गर्म हो रही है, इस टेस्ट को इस समस्या का हल माना जा रहा है. लेकिन अभी यह पता नहीं है कि इस टेक्नोलॉजी का वातावरण पर लंबे समय में क्या असर होगा.

ज्यादा टेक्नोलॉजी से क्या होगा असर

इस टेक्नोलॉजी को बहुत ज्यादा इस्तेमाल करने से कुछ परेशानियां भी हो सकती हैं. उदाहरण के लिए, समंदर के तापमान, समुद्री जीवों और बारिश के पैटर्न में बदलाव आ सकते हैं. इससे दुनिया के अलग-अलग इलाकों में मौसम पर भी असर पड़ेगा.

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