1977 में नासा ने ब्रह्मांड की पड़ताल के लिए वोएजर-2 और वोएजर-1 नाम के स्पेस क्राफ्ट रवाना किए थे. अरबों मील दूर जा चुके ये अंतरिक्ष यान 47 साल बाद भी सिग्नल भेज रहे हैं. हालांकि NASA इन्हें मजबूती देने के लिए समय समय पर सॉफ्टवेयर अपडेट भेजता रहता है. जिसके कुछ समय बाद रिप्लाई भी आता है.
नासा ने भेजा था सॉफ्टवेयर अपडेट
अंतरिक्ष के किसी छोर में मौजूद voyger1 ने नासा को संदेश भेजा है. अक्टूबर 2023 में नासा ने अरबों मील दूर से एक सॉफ्टवेयर अपडेट भेजा था. जो उसे लंबे समय तक चालू रखने में मदद साबित हुआ. अपडेट पूरा होने में 24 घंटे से ज्यादा का टाइम लगा था. नासा के मुताबिक वोएजर 1 से धरती तक संदेश आने में करीब 40 से 48 घंटे लगते हैं.
मिशन जिनसे हैरान है दुनिया
वोएजर-1, और वोएजर-2 से संकेत पकड़ने के लिए नासा ने दुनियाभर में रेडियो सिग्नल सेंटर बनाए हैं. दोनों को अंतरिक्ष में इस मकसद से भेजा गया था कि ये अन्य ग्रहों का हाल हमें बताएं और वहां की तस्वीरें धरती पर पहुंचाएं ताकि अनुमान लगाया जा सके कि कहां जीवन विकसित हो सकता है.
Cartosat-2
धरती के बाहर जीवन की तलाश और ब्रह्मांड का अध्यन करने के लिए हजारों सैटेलाइट भेजे जा चुके हैं. जो चांद, सूरज से लेकर मंगल और बृहस्पति की ओर रवाना हुए. एजुकेशन, वेदर, नेविगेशन जैसी जरूरतों को पूरा करने के लिए सैटेलाइट भेजे जाते हैं. 2024 में इसरो का Cartosat-2 स्पेस में अपना जीवन पूरा करके लौटा था. 14 फरवरी 2024 को ये हिंद महासागर में गिरकर खत्म हुआ.
RHESSI
19 अप्रैल 2023 को धरती पर अंतरिक्ष से बेकार सैटेलाइट गिरा था. 273 Kg के इस सैटेलाइट को नासा ने 21 साल पहले फरवरी 2002 को लॉन्च किया था. इसका नाम RHESSI था.
ERBS
जनवरी 2023 में भी नासा का एक रिटायर्ड सैटेलाइट 38 साल के बाद धरती पर लौटा था. ये अलास्का में गिरा था. 1984 में इसे रक्षा विभाग ने लॉन्च किया था. इस सैटेलाइट को अर्थ रेडिएशन बजट सैटेलाइट (ERBS) के तौर पर जाना गया था. इसे अंतरिक्षयान चैलेंजर के जरिए इसे अंतरिक्ष में भेजा गया था.
वोएजर को जानिए
वोएजर सिर्फ एक स्पेस मिशन नहीं, बल्कि सुदूर ब्रह्मांड को भेजा गया इंसानियत का संदेश था. वैज्ञानिकों का मानना है कि इसमें वोएजर में कैमरा, साउंड रिकॉर्डिंग के अलावा ग्रामोफोन लंबे समय तक खराब नहीं होंगे. ग्रामोफोन तांबे के डिस्क से बने हैं, जो करीब एक अरब साल तक सही सलामत रहेंगे. इस दौरान जो अगर वोएजर किसी ऐसी सभ्यता के हाथ लग गया जो ब्रह्मांड में कहीं बसती है, तो, इन ग्रामोफो रिकॉर्डिंग के जरिए हमें यानी नासा को इंसानियत के होने का सबूत मिलेगा.
1977 में ही क्यों भेजा?
नासा के सीनियर वैज्ञानिक एड स्टोन बताते हैं कि वोएजर यानों को 1977 में रवाना करने की भी एक वजह थी. उस साल सौर मंडल के ग्रहों की कुछ ऐसी स्थिति थी, कि ये यान सभी बड़े ग्रहों यानी जुपिटर, सैटर्न, यूरेनस और नेपच्यून से होकर गुज़रते. साफ है कि स्पेस मिशन वैज्ञानिकों की सोच का नतीजा होते हैं, लेकिन वो आम इंसानों की समझ से परे होते हैं.