शहर
जिन के होने से हम भी हैं ऐ दिल... शहर में हैं वो सूरतें बाक़ी

Siraj Mahi
Jun 11, 2024

अजीब
मैं हूँ भी और नहीं भी अजीब बात है ये... ये कैसा जब्र है मैं जिस के इख़्तियार में हूँ

हस्ती
हस्ती ही अपनी क्या है ज़माने के सामने... इक ख़्वाब हैं जहाँ में बिखर जाएँ हम तो क्या

हवा
तेज़ थी इतनी कि सारा शहर सूना कर गई... देर तक बैठा रहा मैं उस हवा के सामने

इश्क़
उस हुस्न का शेवा है जब इश्क़ नज़र आए... पर्दे में चले जाना शरमाए हुए रहना

ख़बर
रोया था कौन कौन मुझे कुछ ख़बर नहीं... मैं उस घड़ी वतन से कई मील दूर था

अजीब
उठा तू जा भी चुका था अजीब मेहमाँ था... सदाएँ दे के मुझे नींद से जगा भी गया

तमाशा
ये मेरे गिर्द तमाशा है आँख खुलने तक... मैं ख़्वाब में तो हूँ लेकिन ख़याल भी है मुझे

हद
सुन बस्तियों का हाल जो हद से गुज़र गईं... उन उम्मतों का ज़िक्र जो रस्तों में मर गईं

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