"छेड़ो न मुझे मैं कोई दीवाना नहीं हूं..." शकील बदायूनी के शेर

रहमतों से निबाह में गुज़री... उम्र सारी गुनाह में गुज़री

वो हम से दूर होते जा रहे हैं... बहुत मग़रूर होते जा रहे हैं

लम्हा लम्हा बार है तेरे बग़ैर... ज़िंदगी दुश्वार है तेरे बग़ैर

जीने वाले क़ज़ा से डरते हैं... ज़हर पी कर दवा से डरते हैं

खुल गया उन की आरज़ू में ये राज़... ज़ीस्त अपनी नहीं पराई है

बदलती जा रही है दिल की दुनिया... नए दस्तूर होते जा रहे हैं

दुनिया की रिवायात से बेगाना नहीं हूँ... छेड़ो न मुझे मैं कोई दीवाना नहीं हूँ

उन का ज़िक्र उन की तमन्ना उन की याद... वक़्त कितना क़ीमती है आज कल

इक शहंशाह ने बनवा के हसीं ताज-महल... सारी दुनिया को मोहब्बत की निशानी दी है

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