Urdu Poetry in Hindi: घर में बेचैनी हो तो अगले सफ़र की सोचना, फिर सफ़र नाकाम हो जाए तो...

Siraj Mahi
Dec 24, 2024

जैसा मंज़र मिले गवारा कर, तब्सिरे छोड़ दे नज़ारा कर

मिरे हालात को बस यूँ समझ लो, परिंदे पर शजर रक्खा हुआ है

तंहाई का इक और मज़ा लूट रहा हूँ, मेहमान मिरे घर में बहुत आए हुए हैं

चारागरी की बात किसी और से करो, अब हो गए हैं यारो पुराने मरीज़ हम

हज़ार रंग में मुमकिन है दर्द का इज़हार, तिरे फ़िराक़ में मरना ही क्या ज़रूरी है

आप इधर आए उधर दीन और ईमान गए, ईद का चाँद नज़र आया तो रमज़ान गए

घर में बेचैनी हो तो अगले सफ़र की सोचना, फिर सफ़र नाकाम हो जाए तो घर की सोचना

उस बेवफ़ा का शहर है और वक़्त-ए-शाम है, ऐसे में आरज़ू बड़ी हिम्मत का काम है

दिल की बातें दूसरों से मत कहो लुट जाओगे, आज कल इज़हार के धंधे में है घाटा बहुत

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