प्रधानमंत्री से नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत को तत्काल हटाने की मांग
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प्रधानमंत्री से नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत को तत्काल हटाने की मांग

नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत के विवास्पद बयान के बाद बिहार में सियासत गरमायी हुई है. जहां एक ओर विपक्ष सरकार के कामों को लेकर चुटकियां ले रहे हैं. वहीं, सत्तारूढ़ दल के नेता आयोग के बयान पर नाराजगी जतायी है. अमिताभ कांत को पद से हटाने की मांग पटना स्थित एशियन डेवलपमेंट रिसर्च इंस्टीट्यूट (आद्री) ने की है.

आद्री ने की नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत को हटाने की मांग. (फाइल फोटो)

पटनाः नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत के विवास्पद बयान के बाद बिहार में सियासत गरमायी हुई है. जहां एक ओर विपक्ष सरकार के कामों को लेकर चुटकियां ले रहे हैं. वहीं, सत्तारूढ़ दल के नेता आयोग के बयान पर नाराजगी जतायी है. इस बीच अब बिहार में नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत को पद से हटाने की मांग शुरु हो गई है. अमिताभ कांत को पद से हटाने की मांग पटना स्थित एशियन डेवलपमेंट रिसर्च इंस्टीट्यूट (आद्री) ने की है. आद्री ने आयोग के बयानों की कड़ी निंदा करते हुए सीईओ अमिताभ कांत को पद से हटाने की मांग की है.

  1. आद्री ने अमिताभ कांत के बयान की कड़ी निंदा की है
  2. पीएम से अमिताभ कांत को हटाने की मांग की है
  3. अाद्री ने कहा अमिताभ कांत को इतिहास की जानकारी नहीं

समाजिक मुद्दों समेत अर्थशास्त्र, राजनीति और विकास के मुद्दों पर केंद्रित एशियन डेवलपमेंट रिसर्च इंस्टीट्यूट (आद्री) के सदस्य सचिव डॉक्टर शैबाल गुप्ता ने प्रेस रिलीज जारी कर कहा कि नीति आयोग के सीईओ के द्वारा जो बयान दिया गया है वह राष्ट्रीय एकता के हित में बिल्कुल नहीं है.

उन्होंने देश के प्रधानमंत्री से मांग करते हुए कहा अमिताभ कांत को तत्काल पद से हटा दें. गौरतलब है कि नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने अपने अपने बयान में कहा था कि भारत बिहार, यूपी और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों की वजह से पिछड़ा हुआ है.

आद्री के सदस्य सचिव ने नाराजगी जताते हुए कहा कि नीति आयोग देश का शीर्ष संस्था है. उनसे समाजिक आर्थिक असमानता को खत्म करने की आशा की जाती है. लेकिन सीईओ अमिताभ कांत ऐसा बयान दे रहें हैं, ऐसा लगता है कि उन्हें इतिहास के बारे में नहीं पता और न ही उन्हें पता है कि हिंदी पट्टी के प्रदेशों ने क्या समस्याएं झेली है. बिहार और यूपी ने अन्य राज्यों की तुलना में अंग्रेजो द्वारा अधिक प्रतिकूल बर्ताव झेलना पड़ा. इसका असर आजादी के बाद भी राष्ट्र नीतियों में देखने को मिला है.