Ranchi: 15 लाख के इनामी नक्सली इंदल गंझू ने किया सरेंडर, जानें कैसे बना आतंक का पर्याय
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Ranchi: 15 लाख के इनामी नक्सली इंदल गंझू ने किया सरेंडर, जानें कैसे बना आतंक का पर्याय

झारखंड पुलिस को गुरुवार (4 मई) को बड़ी कामयाबी हासिल हुई. 15 लाख के इनामी नक्सली इंदल गंझू उर्फ लल्लन गंझू ने आत्मसमर्पण कर दिया है. बिहार-झारखंड में इंदल रीजनल कमांडर था. बिहार-झारखंड में अलावा छत्तीसगढ़ में भी उसका आतंक था.

प्रतीकात्मक तस्वीर

Naxal Indel Ganjhu Surrender: झारखंड पुलिस को गुरुवार (4 मई) को बड़ी कामयाबी हासिल हुई. 15 लाख के इनामी नक्सली इंदल गंझू उर्फ लल्लन गंझू ने आत्मसमर्पण कर दिया है. बिहार-झारखंड में इंदल रीजनल कमांडर था. बिहार-झारखंड में अलावा छत्तीसगढ़ में भी उसका आतंक था. उस पर झारखंड के चतरा, हजारीबाग, पलामू के साथ बिहार के गया और औरंगाबाद में 145 मामले दर्ज थे. एंटी नक्सल ऑपरेशन के तहत पुलिस का दबाव बढ़ते देखकर इंदल ने सरेंडर कर दिया. 

 

झारखंड पुलिस के आईजी अभियान अमोल वेणुकांत होमकर ने बताया कि पुलिस की दबिश के कारण कई नक्सली आत्मसमर्पण कर रहे हैं या फिर मुठभेड़ में मारे जा रहे हैं. आईजी ने कहा कि बहुत सारे नक्सली अब प्रदेश छोड़कर बाहर जा चुके हैं. उन्होंने बताया कि पुलिस की ओर से नक्सलियों के परिजनों को भी जागरूक किया जा रहा है और उसी का परिणाम है कि कई नक्सली मुख्य धारा से जुड़ने को लेकर आत्मसमर्पण कर चुके हैं.

जमीनी विवाद में उठाई थी बंदूक

उन्होंने कहा कि झारखंड को उग्रवाद मुक्त राज्य बनाने के दिशा में पुलिस और सीआरपीएफ के लिए ये बड़ी कामयाबी है. उन्होंने कहा कि इससे प्रदेश में माओवादी संगठन की कमर टूट गई है. उधर, इंदल गंझू ने रांची जोनल आईजी कार्यालय में पुलिस और सीआरपीएफ अधिकारियों के सामने सरेंडर किया. उसने कहा कि वह प्रदेश सरकार की आत्मसमर्पण नीति का समर्पण करता है. उसने बताया कि वह पिछले 20 सालों से माओवादियों के साथ था. उसने बताया कि जमीनी विवाद में उसने बंदूक उठाई थी और माओवादी संगठन से जुड़ गया था.

माओवाद की कमर टूटी

इस साल पुलिस ने माओवाद की कमर तोड़ने का काम किया है. इसी साल फरवरी में 15 लाख का इनामी नक्सली मिथिलेश सिंह उर्फ दुर्योधन महतो ने सरेंडर किया था. वो 104 नक्सली वारदातों में आरोपी था. मिथिलेश पिछले 30 वर्षों से पुलिस के लिए मोस्ट वांटेड था. उसपर पुलिस स्टेशन और सीआरपीएफ कैंप पर हमला बोलकर पुलिसकर्मियों के हथियार लूटने सहित हत्या, आगजनी, लेवी वसूली के आरोप थे. 

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एक छात्र कैसे बना माओवादी?

मिथिलेश सिंह उर्फ दुर्योधन महतो ने 90 के दशक में बंदूक उठाई थी. वो छात्र संगठन से जुड़कर माओवादी संगठन में शामिल हुआ था. 2001 में वह जेल भी गया था. जेल से बाहर आने के बाद उसका कद और बढ़ गया था. वह सीआरपीएफ को खुली चुनौती देता था. सीआरपीएफ बैरक पर हमला करके हथियार लूट लेता था. बता दें कि इस साल महज 4 महीने के अंदर पुलिस की नक्सलियों से 4 बार मुठभेड़ हुई. 3 अप्रैल को हुई मुठभेड़ में 5 नक्सली मारे गए थे. इन पर 65 लाख का इनाम था. 

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