बिहार में राजनीतिक जुमले के तौर पर लव-कुश की एकता की दुहाई दशकों से दी जाती रही है, लेकिन पिछले दिनों 'नीच' प्रकरण को लेकर राजनीति तेज हो गई है.
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पटना : राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा के 'नीच' प्रकरण के बाद अब जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) कुशवाहा समाज को साधने में जुट गया है. पार्टी की ओर से कुशवाहा राजनीतिक विचार मंच बनाकर पूरे प्रदेश में सम्मेलन कराए जाने की तैयारी हो रही है. इसको लेकर राजनीतिक तेज हो गई है. विपक्ष इसे झांसा देने वाला आयोजन करार दे रहा है. वहीं, जेडीयू की सहयोगी बीजेपी सम्मेलन के समर्थन में उतर आयी है.
बिहार में राजनीतिक जुमले के तौर पर लव-कुश की एकता की दुहाई दशकों से दी जाती रही है, लेकिन पिछले दिनों 'नीच' प्रकरण को लेकर राजनीति तेज हो गई है. उपेंद्र कुशवाहा और एनडीए ने एक दूसरे को तलाक देने की तैयारी कर ली है. इस सबके बीच जेडीयू ने प्लान-बी और सी पर काम करना शुरू किया है. पहले उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी के दोनों विधायकों की जेडीयू से नजदीकियां सामने आयी वहीं, अब पार्टी कुशवाहा सम्मेलन के जरिये कुश को रिझाने की तैयारी में है.
जेडीयू का कुशवाहा सम्मेलन विपक्ष को बिल्कुल नहीं भा रहा है. राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) का कहना है कि केंद्र और राज्य सरकारों ने कुशवाहा समाज को ठगने का काम किया है. वहीं, एनडीए की अब तक सहयोगी रालोसपा का कहना है कि कुशवाहा समाज का वोट लिया गया, लेकिन उसके उत्थान के लिए कोई पहल नहीं की गयी.
विपक्ष के विरोध के बीच जेडीयू के कुशवाहा सम्मेलन को बीजेपी का साथ मिला है. पार्टी नेता और बिहार सरकार में मंत्री राणा रणधीर ने कहा कि किसी जाति का कोई ठेकेदार नहीं हो सकता है. सरकार सबके विकास का काम कर रही है. वो अपने काम के लेकर जनता के बीच जा सकती है.
बिहार में अगर जातीय राजनीति की बात करें, तो मुस्लिम और यादव (एमवाई) के बाद नंबर कुशवाहा समाज का आता है, जिसका वोट सात से आठ फीसदी के बीच है. मुस्लिम और यादव को आरजेडी का परंपरागत वोटर माना जाता रहा है. यही वजह है कि कुशवाहा के वोट का बिहार की राजनीति में खास महत्व है और इसको किसी भी कीमत पर जेडीयू अपने पाले से बाहर नहीं जाने देना चाहती है.