बहुत कुछ कहती है तेजस्वी-मायावती की यह तस्वीर, कैप्शन आप खुद तय कर लें
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बहुत कुछ कहती है तेजस्वी-मायावती की यह तस्वीर, कैप्शन आप खुद तय कर लें

तस्वीर भले ही लखनऊ की हो, लेकिन इसका सियासी असर बिहार में दिखाने की कोशिश की गई है.

मायावती और तेजस्वी यादव की तस्वीर का कैप्शन आप खुद तय करें. (तस्वीर- @yadavtejashwi)

पटना : देश के सबसे बड़े प्रदेश उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के बीच सियासी गठजोड़ की धमक बिहार तक देखने को मिली है. गठबंधन की घोषणा के अगले ही दिन राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के छोटे बेटे और राजनीतिक वारिस तेजस्वी यादव मायावती और अखिलेश यादव से मिलने के लिए लखनऊ पहुंच गए.

लखनऊ में सबसे पहले उनकी मुलाकात बसपा सुप्रीमो मायावती से हुई. तेजस्वी यादव ने मुलाकात की कुछ तस्वीरें ट्वीट भी की है. एक तस्वीर में वह मायावती के पैर छूकर उनका आशीर्वाद ले रहे हैं. तस्वीर भले ही लखनऊ की हो, लेकिन इसका सियासी असर बिहार में दिखाने की कोशिश की गई है. इस मुलाकात के बाद तेजस्वी ने कहा कि बीजेपी बाबा साहेब आंबेडकर के बनाए संविधान को खत्म कर नागपुर का कानून लागू करने में जुटी है.

17 प्रतिशत वोट बैंक पर है नजर
इस मुलाकात के बहाने तेजस्वी यादव ने बिहार के 17 फीसदी अनुसूचित जातियों के वोट बैंक को साधने की कोशिश की है. क्योंकि वह जानते हैं कि अटूट एम-वाई (मुस्लिम-यादव) समीकरण के साथ अगर महदलितों को आरजेडी के पक्ष में करने में सफल होते हैं तो इसका फायदा आने वाले चुनावों में देखने को मिल सकता है. 

इससे पहले तेजस्वी यादव एससी-एसटी एक्ट के बहाने नरेंद्र मोदी सरकार पर पर दलितों और पिछड़े वर्ग को आपस में लड़ाने का आरोप लगा चुके हैं. क्योंकि वह अपने आप को पार्टी के कोर वोटर के साथ भी खड़ा दिखाना चाहते हैं. शायद उन्हें इस बात का एहसास रहा होगा कि एससी-एसटी एक्ट के बेजा इस्तेमाल की जब बात होती है तो इसकी गैर जमानती धारा सिर्फ सवर्णों के लिए नहीं, बल्कि अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में शामिल जातियों पर भी लागू होती है और यादव भी इसमें शामिल हैं.

लालू यादव भी कर चुके हैं कोशिश
मायावती से चेहरे को भुनाने की कोशिश कोई पहली बार नहीं हो रही है. इससे पहले जब बसपा सुप्रीमो ने राज्यसभा से इस्तीफा दिया था, तब उस समय लालू यादव ने उन्हें राज्यसभा से सदन में भेजने के प्रस्ताव दिया था. 

पहले एससी-एसटी एक्ट के बहाने अपने कोर वोट बैंक के साथ खड़ा होना और अब दलित राजनीति के एक प्रमुख स्तंभ मायावती के साथ उनकी मुलाकात, एक नई राजनीति को बयान कर रही है. यह एमवाई समीकरण और महादलित वोटरों को साथ-साथ रखने की एक कवायद है. अब देखना दिलचस्प होगा कि लालू की गैर मौजूदगी में रामविलास पासवान के रहते हुए वह अपनी इस रणनीति में किस हद तक सफल हो पाते हैं.