तमिलनाडु की तर्ज पर पिछड़ों को मिले पूरे देश में 69 फीसदी आरक्षण : जीतेंद्र नाथ
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तमिलनाडु की तर्ज पर पिछड़ों को मिले पूरे देश में 69 फीसदी आरक्षण : जीतेंद्र नाथ

पिछड़े वर्ग के लिए 50 फीसदी की सीमा का निर्धारण पूरी तरह से गैर-कानूनी है. उन्‍होंने बताया कि इस बाबत न ही संविधान में उल्‍लेख किया गया है और न ही सुप्रीम कोर्ट ने इस पर कोई फैसला दिया है.

सामाजिक-आर्थिक आधार पर जनगणना को अभी तक प्रकाशित नहीं किया गया है. जिसके चलते पिछड़े वर्ग से जुड़े सही तथ्‍य सामने नहीं आ पा रहे हैं.

नई दिल्‍ली: दलित और अतिपिछड़ों के लिए आरक्षण की सीमा बढ़ाने के लिए राष्‍ट्रीय लोक समता पार्टी ने अधिकार सम्‍मेलन की शुरूआत की है. अधिकार सम्‍मलेन के जरिए रालोसपा ने केंद्र सरकार से मांग की है कि देश में न केवल आबादी के आधार पर पिछड़ों और अतिपिछड़ों को आरक्षण मिले, बल्कि तमिलनाडु की तर्ज पर पूरे देश में सामाजिक रूप से पिछड़े इस वर्ग को 69 फीसदी का आरक्षण यथाशीघ्र उपलब्‍ध कराया जाए. रालोसपा के अतिपिछड़ा प्रकोष्‍ठ के प्रभारी जीतेंद्र नाथ ने जी-डिजिटल से बातचीत में बताया कि आरक्षण की मांग को लेकर बिहार के 38 जिलों में अधिकार सम्‍मेलन की शुरूआत हो चुकी है. जल्‍द ही, इस सम्‍मेलन को बिहार के हर शहर और गांव तक ले जाया जाएगा. सम्‍मेलन के प्रथम चरण में बिहार के सभी जिलों में कार्यक्रमों का आयोजन कर समाज के लोगों को जागरूक करने का प्रयास किया जा रहा है. सम्‍मेलन का प्रथम चरण 7 अक्‍टूबर तक पूरा हो जाएगा.  

  1. 10 लाख पदों पर हो दलित और अतिपिछड़ा वर्ग की भर्ती
  2. सरकार जल्‍द प्रकाशित करे जातीय सामाजिक जनगणना
  3. गैरकानूनी है आरक्षण के लिए 50% की सीमा का निर्धारण

गैरकानूनी है आरक्षण के लिए 50 फीसदी की सीमा का निर्धारण
रालोसपा के अतिपिछड़ा प्रकोष्‍ठ के प्रभारी जीतेंद्र नाथ ने जी-डिजिटल से बातचीत में बताया कि पिछड़े वर्ग के लिए 50 फीसदी की सीमा का निर्धारण पूरी तरह से गैर-कानूनी है. उन्‍होंने बताया कि इस बाबत न ही संविधान में उल्‍लेख किया गया है और न ही सुप्रीम कोर्ट ने इस पर कोई फैसला दिया है. इस बाबत सुप्रीम कोर्ट ने अपनी एक राय दी थी, जिसे कानून मान कर सरकारें आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 फीसदी मानने लगी हैं. उन्‍होंने उदाहरण देते हुए बताया कि वर्तमान समय में तमिलनाडु में पिछड़ा वर्ग, अनसूचित जाति-जनजाति के लिए 69 फीसदी आरक्षण की व्‍यवस्‍था है. यदि यह व्‍यवस्‍था गैर-कानूनी है तो तमिलनाडु में कैसे लागू हो सकती है. वहीं, तमिलनाडु में आरक्षण की यह व्‍यवस्‍था कानूनी है तो इसको पूरे देश में तत्‍काल लागू किया जाए. उन्‍होंने मांग की कि इस बाबत सरकार संसद में यथाशीघ्र बिल लाकर आरक्षण में 50 फीसदी के कैप को खत्‍म कर दलित और अति‍दलित वर्ग को उसका अधिकार दे. 

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राष्‍ट्रीय लोक समता पार्टी के उपाध्‍यक्ष और अतिपिछड़ा वर्ग प्रकोष्‍ठ के प्रभारी जीतेंद्र नाथ

10 लाख पदों पर हो दलित और अतिपिछड़ा वर्ग की भर्ती
रोलोसपा के अतिपिछड़ा प्रकोष्‍ठ के प्रभारी जीतेंद्र नाथ का कहना है कि देश के संविधान में 27 फीसदी आरक्षण ओबीसी और 22.5 फीसदी आरक्षण दलित और आदिवासी वर्ग को दिया गया है. बावजूद इसके, मौजूदा समय में सरकारी पदों पर महज 11 फीसदी ओबीसी और 12 फीसदी एससी/एसटी वर्ग के लोग तैनात हैं. रालोसपा ने सरकार से मांग की है कि भर्ती के इस बैकलॉग को अतिशीघ्र भरा जाए. उन्‍होंने बताया कि वर्तमान समय में देश में करीब 30 लाख पद रिक्‍त हैं. बैकलॉक के चलते करीब 10 लाख पदों पर पिछड़े वर्ग का हक है. जिसमें शिक्षकों की करीब 3 लाख, भारतीय रेल में 2 लाख और बैंकिंग सेक्‍टर में करीब 1.5 लाख पद खाली पड़े हैं. इस तरह, दूसरे सरकारी विभाग भी हैं, जिसमें भारी संख्‍या में पद रिक्‍त पड़े हुए हैं. सरकार इन पदों पर जल्‍द से जल्‍द पिछड़े वर्ग की भर्ती कर उनका अधिकार मुहैया कराए. उन्‍होंने कहा कि इस समय अतिपिछड़े वर्ग की पहली प्राथमिकता स्‍वाभिमान और सम्‍मान है, उसके बाद दूसरी प्राथमिकता रोटी है.

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पिछड़े समाज को जागरूक करने के लिए रालोसपा 7 अक्‍टूबर तक बिहार के विभिन्‍न शहरों में अधिकार सम्‍मेलन का आयोजन करेगी.

सरकार जल्‍द प्रकाशित करे जातीय-सामाजिक जनगणना के आंकड़े
रालोसपा अतिपिछड़ा प्रकोष्‍ठ के प्रभारी जीतेंद्र नाथ ने कहा कि रालोसपा ने सरकार से मांग की है कि 2011 में जातीय-सामाजिक आधार पर हुई जणगणना को अतिशीघ्र प्रकाशित किया जाए. जिससे दलित, अतिपिछड़े और आदिवासी समाज की आर्थिक और सामाजिक स्थित से जुड़े सही तथ्‍य पता चल सकें. उन्‍होंने कहा कि 1979 में मंडल आयोग ने शिफारिस की थी कि अगली जनगणना जातीय-सामाजिक आधार पर की जाए. 1989 में तत्‍कालीन प्रधानमंत्री बीपी सिंह इस बाबत कदम उठाते, इससे पहले उनकी सरकार गिर गई. उसके बाद प्रधानमंत्री बने एचडी देवगौड़ा ने इसका आश्‍वासन दिया, लेकिन कुछ हो नहीं सका. तमाम कोशिशों के बावजूद अगले 20 सालों तक कुछ नहीं हुआ. 2009 में तत्‍कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने यह कार्य करने की जिम्‍मेदारी ली. डॉ. मनमोहन सिंह के प्रयासों से सामाजिक-आर्थिक आधार पर जनगणना तो हो गई, लेकिन उसको अभी तक प्रकाशित नहीं किया गया है. जिसके चलते पिछड़े वर्ग से जुड़े सही तथ्‍य सामने नहीं आ पा रहे हैं.