‘श्री सम्मेद शिखर’ को लेकर झारखंड सरकार के फैसले के खिलाफ सड़कों पर उतरा जैन समाज, देशभर में प्रदर्शन
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‘श्री सम्मेद शिखर’ को लेकर झारखंड सरकार के फैसले के खिलाफ सड़कों पर उतरा जैन समाज, देशभर में प्रदर्शन

जैन धर्म का सबसे महत्वपूर्ण और मशहूर तीर्थस्थल झारखंड के गिरिडीह जिले में पड़ता है. यहां जैन धर्मावलंबी जीवन में एक बार जरूर आना चाहते हैं. उनके लिए यह दुनिया का सबसे बड़ा तीर्थस्थल है. कहते हैं कि इसी पहाड़ी पर जैन धर्म के 24 में से 20 तीर्थंकरों ने निर्वाण प्राप्त किया था.

(फाइल फोटो)

रांची: जैन धर्म का सबसे महत्वपूर्ण और मशहूर तीर्थस्थल झारखंड के गिरिडीह जिले में पड़ता है. यहां जैन धर्मावलंबी जीवन में एक बार जरूर आना चाहते हैं. उनके लिए यह दुनिया का सबसे बड़ा तीर्थस्थल है. कहते हैं कि इसी पहाड़ी पर जैन धर्म के 24 में से 20 तीर्थंकरों ने निर्वाण प्राप्त किया था. ऐसे में गिरीडीह ज़िले में पारसनाथ पहाड़ी पर बना तीर्थस्थल जैन धर्म के अनुयायियों के लिए आस्था का सबसे बड़ा केंद्र है. झारखंड सरकार इसे पर्यटन स्थल के तौर पर घोषित कर रही है, जिसका जैन समाज की तरफ से लगातार विरोध किया जा रहा है. 

देश के कई राज्यों में इस फैसले के खिलाफ हो रहा प्रदर्शन 
झारखंड सरकार द्वारा 'श्री सम्मेद शिखरजी' को पर्यटन स्थल घोषित करने के बाद से देशभर में इसके खिलाफ जैन धर्मावलंबियों का विरोध खुलकर सामने आ रहा है. जान लोग इस आस्था के केंद्र को पर्यटन स्थल घोषित करने का विरोध कर रहे हैं. जैन समुदाय के लोग महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई में आज इसके खिलाफ सड़कों पर उतरे और अपना विरोध दर्ज कराया. सोशल मीडिया पर भी झारखंड सरकार के इस फैसले के खिलाफ जैनियों का गुस्सा आपको देखने को मिलेगा. 

दिल्ली में इंडिया गेट पर भी इसके खिलाफ प्रदर्शन 
झारखंड सरकार के द्वारा 'श्री सम्मेद शिखरजी' को लेकर किए गए फैसले के खिलाफ भारी संख्या में लोग दिल्ली के इंडिया गेट पर भी प्रदर्शन करते नजर आए. आपको बता दें कि इसी तरह के प्रदर्शन पूरे देश में जगह-जगह हो रहे हैं. 

ये है आंदोलन की वजह जिसने समूचे जैन समाज को सड़कों पर ला दिया 
दरअसल इससे पहले गुजरात में भी एक और मामला सामने आ चुका है जहां भावनगर जिले में पड़नेवाले शत्रुंजय पहाड़ी पर लगे बोर्ड और लोहे के खंभे को हानि पहुंचाई गई जिसका विरोध किया जा रहा है, बता दें कि यह पूरी घटना सीसीटीवी कैमरे में कैद हो गई थी. इसके बाद से यहां दो समुदायों के बीच स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है. वहीं दूसरी तरफ सरकार के द्वारा जैन दिगंबर श्वेतांबर समाज के पवित्र स्थल भगवान पारसनाथ पर्वत को पर्यटक स्थल घोषित किए जाने के मामले पर भी जैन समाज गुस्से में है. उनके गुस्से की वजह यह है कि अगर इसे पर्यटन स्थल घोषित किया गया तो यहां की पवित्रता नष्ट हो जाएगी. जैन समाज इसी बदलाव के पक्ष में नहीं है. 

हालांकि इस सब के बीच जैन मुनियों के द्वारा लगातार लोगों से शांति बनाए रखने और शांतिपूर्ण प्रदर्शन की अपील की जा रही है, बता दें कि जैन समाज की तरफ से यह भी कहा जा रहा है कि वह भले देश में जनसंख्या के तौर पर सिर्फ एक प्रतिशत हैं, लेकिन देश के कुल टैक्स में उनका हिस्सा 24 प्रतिशत है. 

जैन धर्म के अनुयायी इस पहाड़ी के शिखर को मानते हैं 'सम्मेद' शिखर 
मान्यता है कि जैन धर्म के 24 में से 20 तीर्थकरों ने यहीं से मोक्ष को प्राप्त हुए थे. यहां पहाड़ी पर इन 20 तीर्थंकरों के चरण चिन्ह अंकित हैं. जिन्हें 'टोंक' कहा जाता है. यहां जैन धर्म के दोनों पंथों श्वेताम्बर और दिगम्बर के मंदिर बने हुए हैं. ऐसे में इसकी महत्ता ज्यादा बढ़ा जाती है. जैन धर्म के अनुयायी इस पहाड़ी की शिखर को 'सम्मेद शिखर' कहते हैं. इस स्थान को 'मधुबन' के नाम से भी प्रसिद्धि प्राप्त है. इस पहाड़ी का नाम जैनों के 23 वें तीर्थंकर 'पार्श्वनाथ' के नाम पर 'पारसनाथ' पड़ा. इस पहाड़ी पर 2 हजार साल से भी ज्यादा पुराने कई मंदिर हैं. दुनिया भर के जैन धर्मावलंबी इस पहाड़ के दर्शन करने के साथ इस पहाड़ी की परिक्रमा करने भी आते हैं. 

पहाड़ की तलहटी से लेकर चोटी तक जैन मंदिरों की भरमार
पारसनाथ पहाड़ी की तलहटी से लेकर चोटी तक बड़ी संख्या में जैन मंदिरों की श्रृंखला आपको देखने को मिल जाएगी, यहां एक छोटा मोटा जैनियों का शहर बसा हुआ है. इसे लोग 'मधुबन' के नाम से भी जानते हैं. यहां पहाड़ी की प्राकृतिक खूबसूरती और हरियाली के बीच अगर आप मंदिर में दर्शन करने जाना चाहते हैं तो आपको 1000 से ज्यादा सीढ़ियां चढ़नी होंगी. यहां के बारे में आपको बता दें कि तलहटी से शिखर तक यहां लगभग 10 किलोमीटर की यात्रा पैदल करनी होती है. 

संथाल आदिवासी भी इसे देवता की पहाड़ी कहते हैं
संताल आदिवासी इस पहाड़ी पर अपने आराध्य देव 'मारंग बुरु' का निवास मानते हैं. ऐसे में वह इस पहाड़ी को देवता की पहाड़ी भी कहते हैं. यह संथाल-आदिवासी की आस्था का भी सबसे बड़ा केंद्र है. यहां संथाल आदिवासी बैसाख पूर्णिमा में एक दिन का शिकार त्यौहार मनाते हैं. 

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