बीजेपी जहां अबकी बार 65 पार का नारा दे रही थी वहीं, दूसरी ओर बीजेपी अभी तक 21 सीटों पर आगे चल रही है और चार सीटों पर जीत दर्ज कर चुकी है.
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रांची: झारखंड विधानसभा चुनाव परिणाम से बीजेपी को निराशा मिली है. बीजेपी जहां अबकी बार 65 पार का नारा दे रही थी वहीं, दूसरी ओर बीजेपी अभी तक 21 सीटों पर आगे चल रही है और चार सीटों पर जीत दर्ज कर चुकी है.
ताजा रुझानों में जेएमएम के नेतृत्व में महागठबंधन को स्पष्ट बहुमत मिलता दिख रहा है और इसमें कोई शक नहीं है कि हेमंत सोरेन झारखंड के मुख्यमंत्री बनेंगे. झारखंड में रघुवर दास पहले ऐसे मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया है. माना जा रहा था कि बीजेपी को इस चुनाव में जीत आसानी से दर्ज कर सकती है. खुद पीएम और अमित शाह भी लगातार झारखंड में चुनावी कैंपेन कर रहे थे लेकिन बीजेपी की गलतियां उन पर भारी पड़ गई.
#Jharkhand Mukti Morcha leader Hemant Soren on being asked whether National Register of Citizens (NRC) will be implemented in the state: We will take a decision keeping in mind the interest of the state. pic.twitter.com/HY6EyhSF63
— ANI (@ANI) December 23, 2019
आइए जानते हैं कि आखिर हर संभव कोशिश के बाद भी कमल झारखंड में क्यों नहीं खिल पाया.
स्थानीय छोड़ राष्ट्रीय मुद्दों पर लड़ा चुनाव
एक और जेएमएम के नेतृत्व में महागठबंधन जहां राज्य के स्थानीय मुद्दे जल, जंगल, जमीन, शिक्षा, व्यवसाय का मुद्दा जनता के बीच बार-बार उठा रही थी वहीं, दूसरी ओर बीजेपी राम मंदिर, अनुच्छेद 370 जैसे मुद्दों को जनता के बीच भुनाने की कोशिश कर रही थी जिसका खामियाजा बीजेपी को भुगतना पड़ा. लोगों ने स्थानीय मुद्दों को राष्ट्रीय मुद्दों की जगह तरजीह दी.
आजसू के साथ गठबंधन तोड़ना पड़ा महंगा
2014 में बीजेपी ने आजसू के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था. लेकिन इस बार बीजेपी ने झारखंड में अकेले लड़ने का फैसला किया जिसका नतीजा ये हुआ कि आजसू ने कई जगहों पर बीजेपी को भी कड़ी टक्कर दी. आजसू बीजेपी के साथ मिलकर पहले भी चुनाव लड़ चुकी है लेकिन इस बार बीजेपी ने आजसू से नाता तोड़ लिया.
रघुवर दास की जिद पड़ी महंगी
माना जाता है कि रघुवर दास कि जिद का खामियाजा बीजेपी को भुगतना पड़ा. सूत्रों की मानें तो ये रघुवर दास की जिद थी कि झारखंड में बीजेपी अकेले चुनाव लड़े और बीजेपी से नाराज सरयू राय जैसे बाकी नेताओं को भी ना मनाना उनकी ही जिद थी जिसका परिणाम ये हुआ कि खुद सीएम की सीट जमशेदपुर पूर्वी में पेंच फंस गया है और रघुवर दास के गढ़ जमशेदपुर पूर्वी में सरयू राय 12 हजार मतों से आगे चल रहे हैं.
Jharkhand CM and BJP candidate from Jamshedpur East, Raghubar Das: I am hopeful that result will be in our favour. I am waiting for the final results. BJP will accept the people's mandate. (file pic) #JharkhandAssemblyElections pic.twitter.com/PVwgvul7cj
— ANI (@ANI) December 23, 2019
विपक्ष ने किया गोल बंद
विपक्ष ने मिलकर चुनाव बेहद प्लानिंग के साथ लड़ा. विपक्ष ने एकजुट होकर चुनाव लड़ा और नतीजा ये हुआ कि झारखंड में कमल मुरझा गया. 2014 में जेएमएम, कांग्रेस और आरजेडी ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था लेकिन इस बार हरियाणा और महाराष्ट्र से सबक लेते हुए सबने मिलकर चुनाव लड़ा.
अपनों को ना मनाना पड़ा भारी
झारखंड में बीजेपी के कई बड़े नेताओं ने अपनी नाराजगी जाहिर की. बीजेपी के बड़े नेता राधाकिशोर कृष्ण आजसू में शामिल हो गए. सरयू राय को टिकट ना देना भी बीजेपी को भारी पड़ गया. सरयू राय ने बीजेपी और रघुवर दास के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया और अब ये बात लगभग साफ है कि वो रघुवर दास को हराकर जमशेदपुर पूर्वी सीट जीतने वाले हैं.
सीएम छोड़ पीएम को बनाया चेहरा
झारखंड में बीजेपी ने सीएम के चेहेरे के लिए किसी को आगे ना कर पीएम नरेंद्र मोदी को आगे किया और चुनाव लड़ें. राजनाथ सिंह जैसे दिग्गज नेताओं ने भी चुनावी सभा में साफ-साफ कहा कि पीएम मोदी के नाम पर, उनके चेहरे के नाम पर वोट दें. इससे मतदाताओं के सामने ये तस्वीर नहीं साफ हो पाई कि आखिर बीजेपी के जीतने पर सीएम रघुवर दास ही होंगे या कोई और जबकि महागठबंधन शुरू से साफ-साफ कह रही है कि जीतने पर हेमंत सोरेन ही मुख्यमंत्री बनेंगे.
#WATCH: Jharkhand Mukti Morcha's (JMM) Hemant Soren rides a cycle at his residence in Ranchi. JMM is currently leading on 28 seats while the Congress-JMM-RJD alliance is leading on 46 seats. pic.twitter.com/e9HYcb26Y2
— ANI (@ANI) December 23, 2019
आदिवासी चेहरा ना होना
झारखंड में आदिवासियों की बड़ी जनसंख्या है और उन्हें ही मुख्य रूप से वोट बैंक माना जाता है. राज्य में 28 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं. महागठबंधन ने आदिवासी नेता हेमंत सोरेन को सीएम के लिए आगे किया जबकि गैर आदिवासी चेहरे रघुवर दास की कुछ नीतियों को लेकर आदिवासियों में आक्रोश था. उनका मानना था कि रघुवर दास की कई पॉलिसी आदिवासी विरोधी है. माना जाता है कि अर्जुन मुंडा को आगे करने से शायद बीजेपी की बात बन सकती थी लेकिन ऐसा ना करना बीजेपी को भारी पड़ गया