एमपी में मायावती से हाथ मिलाएगी कांग्रेस, विधानसभा चुनावों में बढ़ेगी भाजपा की टेंशन
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एमपी में मायावती से हाथ मिलाएगी कांग्रेस, विधानसभा चुनावों में बढ़ेगी भाजपा की टेंशन

इस साल के अंत में मप्र समेत राजस्थान, छत्तीसगढ और मिजोरम में चुनाव होने हैं. इनमें से तीन राज्यों में भाजपा की सरकार है.

इस साल चुनावों के कारण ही मप्र कांग्रेस की कमान कमलनाथ को दी गई. IANS

नई दिल्ली : इस साल के अंत में मप्र समेत देश के चार राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं. कांग्रेस ने इन चुनावों को देखते हुए अभी से तैयारी शुरू कर दी है. इन चारों राज्यों में कांग्रेस अपने लिए मौका देख रही है. मप्र, राजस्थान और छत्तीस गढ़ में भाजपा सरकार है. इसमें मप्र और छत्तीस गढ़ में 15 साल से भाजपा सत्ता पर काबिज है. यहां एंटी इनकंबेंसी एक मु्द्दा रहेगा. ऐसे में कांग्रेस इन राज्यों में अपने लिए कोई मौका नहीं छोड़ना चाहती है.

  1. मप्र और छत्तीसगढ़ में 15 साल से भाजपा सत्ता में है
  2. मध्यप्रदेश की 60 सीटों पर बसपा का प्रभाव है
  3. भाजपा से वोट शेयर के अंतर को पाटने के लिए कांग्रेस का कदम

मप्र में कांग्रेस भाजपा को सत्ता से बाहर करने के लिए हर संभव कोशिश में जुट गई है. हाल के चुनावों में गठबंधन के उम्मीदवार को जिस तरह से जीत मिली है, उसे देखते हुए वह सभी राज्यों में गठबंधन बनाना चाहती है. इसकी शुरुआत उसने मप्र से कर दी है. मप्र में वह इस चुनावों में बसपा से गठबंधन करेगी. इस बात की पुष्टि अब कांग्रेस के मप्र अध्यक्ष कमलनाथ ने कर दी है. टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक कमलनाथ ने कहा, हमारा प्रयास साथ में लड़ने का है, जिससे वोटों में बिखराव न हो और भाजपा को फायदा न मिले.

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मप्र में कांग्रेस सिर्फ बीएसपी से ही नहीं बल्कि गोंडवाना गणतंत्र पार्टी से भी गठबंधन करेगी. इस पार्टी का मप्र के आदिवासी हिस्सों में अच्छी खासी पैठ है. इनमें मंडला, डिंडोरी, जबलपुर और छिंदवाड़ा प्रमुख हैं. छिंदवाडा कमलनाथ का भी क्षेत्र है.

कांग्रेस इसलिए चाहती है गठबंधन
सभी जानते हैं कि कांग्रेस मप्र में ये अपनी सबसे बड़ी लड़ाई लड़ रही है. अगर इन चुनावों में उसे हार मिली तो उसका फिर सत्ता में लौटना फिलहाल संभव नहीं होगा. मप्र चुनाव समिति के प्रमुख ज्योतिरादित्य सिंधिया भी अपने चुनावी अभियान में कह रहे हैं कि अभी नहीं तो कभी नहीं. इसलिए कांग्रेस चाहती है कि वह इस बार भाजपा को सत्ता से बेदखल कर दे.

ऐसा है वोटों का गणित, इसलिए भाजपा को टेंशन
पिछले चुनावों की बात करें तो भाजपा को 44.8 फीसदी वोट मिले थे. वहीं कांग्रेस को 36.3 प्रतिशत वोट मिले थे. बसपा को राज्य में 6.3 प्रतिशत वोट मिले थे. दोनों को मिला दिया जाए तो ये आंकड़ा करीब 42.6 फीसदी तक पहुंच जाता है. हालांकि विशेषज्ञ ये भी मानते हैं कि ये दोनों पार्टियां मिलकर 8 फीसदी का अंतर पाट सकती हैं.

बसपा को कांग्रेस दे सकती है 30 सीटें
अगर मप्र की बात करें तो पूरे प्रदेश में करीब 60 सीटें ऐसी हैं, जहां बसपा अपना प्रभाव रखती है. हालांकि कांग्रेस उसे इन विधानसभा चुनावों में 30 सीटें दे सकती है.

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