मध्य प्रदेश में सवर्ण तबके को सपाक्स नाम के संगठन ने अपनी आवाज दी है. सपाक्स यानी सामान्य, पिछड़ा और अल्पसंख्यक वर्ग.
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नई दिल्ली: इस साल मार्च में महाराष्ट्र के एक सरकारी अधिकारी की याचिका पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति-जनजाति(एससी-एसटी) के खिलाफ अत्याचार निवारण कानून के सख्त प्रावधानों को नरम किया था. कोर्ट ने कहा कि इस श्रेणी के आरोपी की गिरफ्तारी शुरुआती जांच या वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक की अनुमति के बाद ही होगी. पहले इसमें तत्काल गिरफ्तारी का प्रावधान था.
इस फैसले के बाद देश में एससी-एसटी संगठनों ने आंदोलन किया. नतीजतन केंद्र सरकार ने मानसून सत्र में अध्यादेश लाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बदल दिया. अब वह पुराने स्वरूप में फिर से लागू हो गया है. इस पर दलित संगठनों ने तो संतोष व्यक्त किया लेकिन सवर्ण समाज के कई तबकों में इसका विरोध शुरू हो गया है. इसके साथ ही साथ प्रोन्नति में आरक्षण पर सरकार के रुख से भी सवर्ण तबके में आक्रोश दिख रहा है. फिलवक्त इसके खिलाफ सबसे मुखर आवाज मध्य प्रदेश और राजस्थान से उठ रही हैं. ऐसा इसलिए भी क्योंकि अगले कुछ महीनों के भीतर इन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं.
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इसका सबसे तीखा असर मध्य प्रदेश के ग्वालियर-चंबल डिवीजन में देखने को मिल रहा है. नतीजतन शिवराज सिंह चौहान सरकार के कई मंत्रियों को इस विरोध के कारण अपने सार्वजनिक कार्यक्रम को रद करना पड़ रहा है. इस कड़ी में मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सोमवार को खेल एवं युवा कल्याण मंत्री यशोधरा राजे को अपना शिवपुरी का दौरा रद करना पड़ा और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री नारायण सिंह कुशवाहा को अंबाह का और राज्यमंत्री ललिता यादव को दतिया का अपना दौरा रद करना पड़ा. सिर्फ इतना ही नहीं ग्वालियर में केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, मंत्री नारायण सिंह कुशवाहा के घरों की सुरक्षा भी बढ़ाई गई.
सपाक्स बनी आवाज
मध्य प्रदेश में सवर्ण तबके को सपाक्स नाम के संगठन ने अपनी आवाज दी है. सपाक्स यानी सामान्य, पिछड़ा और अल्पसंख्यक वर्ग, एस-एसटी एक्ट के संबंध में लाए गए अध्यादेश और प्रोन्नति में आरक्षण के खिलाफ खुलकर सड़कों पर उतर पड़ा है. इस संगठन ने खुली चेतावनी देते हुए कहा है कि यदि उनकी मांगों पर गौर नहीं किया गया तो वो चुनाव में उतर सकता है. राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक इसका सीधा नुकसान बीजेपी को हो सकता है क्योंकि सवर्ण तबके के बड़े हिस्से को बीजेपी का परंपरागत वोट बैंक माना जाता है. इस स्थिति में सपाक्स चुनावों में बीजेपी के लिए 'वोटकटवा' की भूमिका में आ सकता है.
बीजेपी की चिंता
एससी-एसटी एक्ट से जुड़ा अध्यादेश लाकर सरकार ने सियासी लिहाज से दलितों को तो साधने का काम किया है लेकिन फिलहाल सवर्ण तबके के नाराज धड़ों की काट उसके पास नहीं दिखाई देती. संभवतया इसलिए ही मध्य प्रदेश के प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष राकेश सिंह सोमवार को भोपाल में आयोजित प्रेस कांफ्रेंस में इस सवाल पर चुप्पी साध गए.
सूत्रों के मुताबिक पिछले दिनों बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व को भी अगड़ों की नाराजगी के बारे में अवगत कराया गया था. अब ऐसे में यदि मध्य प्रदेश में सवर्णों का आंदोलन तेज होता है तो इसका असर चुनावों के लिहाज से राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी देखने को मिलेगा. ये तीनों ही राज्य बीजेपी शासित हैं और परंपरागत वोट बैंक को साधे रखने के लिहाज से बीजेपी इस मुद्दे को ज्यादा वक्त तक नजरअंदाज नहीं कर सकती. फिलहाल सूत्रों के मुताबिक सवर्णों के आंदोलन ने बीजेपी के अंदरखाने चिंता बढ़ा दी है.