ग्वालियर-चंबल संभाग से विधानसभा पहुंचे कुछ तो ऐसे भी विधायक हैं जो सिर्फ अपने हस्ताक्षर ही कर पाते हैं.
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ग्वालियर: विकास में शिक्षा का बड़ा योगदान होता है. ऐसे में आवश्यक हो जाता है कि आप जिसे अपने इलाके का जनप्रतिनिधि चुनते हैं वह पढ़ा-लिखा हो. लेकिन अक्सर ऐसा कम ही देखने को मिलता है कि राजनीति में ज्यादतर लोग उच्च शिक्षित हों. इस बार मध्य प्रदेश के ग्वालियर-चंबल संभाग से विधानसभा पहुंचे 34 में से 16 विधायकों ने तो कॉलेज की दहलीज पर कदम तक नहीं रखा है. वहीं कुछ तो ऐसे भी माननीय हैं जो सिर्फ अपने हस्ताक्षर ही कर पाते हैं.
बीजेपी की बात करें तो श्योपुर जिले की विजयपुर विधानसभा से नवनिर्वाचित विधायक सीताराम आदिवासी का पढ़ाई-लिखाई से कोई लेना-देना नहीं रहा. वह सिर्फ अपने हस्ताक्षर ही कर पाते हैं. आदिवासी ने एलएलबी पास और पांच बार के विधायक कांग्रेस प्रत्याशी रामनिवास रावत को हराया है. इसी तरह गुना से विधायक चुने गए गोपीलाल जाटव भी केवल अपने साइन ही कर पाते हैं. इसके अलावा ग्वालियर ग्रामीण से दूसरी बार के विधायक भारत सिंह कुशवाह और कोलारस विधायक वीरेंद्र रघुवंशी भी महज 12वीं पास हैं.
इस पार्टी का पलड़ा भारी
सबसे कम पढ़े-लिखे और सबसे ज्यादा उच्च शिक्षित माननीय भी बीजेपी के ही हैं. इनमें दतिया से नरोत्तम मिश्रा और अटेर से विधायक अरविंद भदौरिया पीएचडी होल्डर हैं. हालांकि बीजेपी-कांग्रेस के लोग यह मानते हैं कि जनप्रतिनिधियों को पढ़ा-लिखा होना जरूरी है, लेकिन कई बार उनका अनुभव शिक्षा पर भारी पड़ता है.
कांग्रेस के विधायक
अगर कांग्रेस कि करें तो श्योपुर से विधायक बाबू जंडेल महज 7वीं पास हैं. जौरा विधनसभा से विधायक बनबारी जापथाप और सुमावली से ऐदल सिंह कंषाना महज 8वीं तक पढ़े-लिखे हैं. वहीं 12वीं क्लास तक शिक्षित विधायकों में गोहद से रणवीर जाटव, ग्वालियर से प्रद्युम्न सिंह तोमर, डबरा से विधायक इमारती देवी, पोहरी से सुरेश धाकड़ और करैरा से विधायक जसवंत जाटव हैं. उधर, कांग्रेस के उच्च शिक्षित विधायकों में मुरैना से रघुराज सिंह, सबलगढ़ से बैजनाथ कुशवाह, मेहगांव से ओपीएस भदौरिया और ग्वालियर दक्षिण से विधायक प्रवीण पाठक प्रमुख हैं.
अफसर कर सकते हैं गुमराह
वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप मांढरे ने इस बारे में अपनी राय देते हुए कहा कि विकास के लिए जनप्रतिनिधि का पढ़ा लिखा होना बेहद जरूरी है, क्योंकि सदन कि कार्रवाई और अन्य कार्यों में पत्राचार करना होता है और फाइल भी पढ़नी होती है. ऐसे वह कम पढ़े-लिखे होंगे तो विकास के प्रभावित होने की आशंका बनी रहती है. साथ ही अफसर माननीयों को गुमराह भी कर सकते हैं, लेकिन जनता ने उन्हें चुना है तो कुछ सोच समझकर ही चुना होगा.