मध्य प्रदेश के खंडवा जिले की दो आदिवासी लड़कियों ने परंवराओं को तोड़ मिसाल पेश किया है. ये लड़कियां रोजी-रोटी के लिए मोटरसाइकिल और मोबाइल रिपेयरिंग करती हैं.
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प्रमोद सिन्हा/खंडवाः मध्य प्रदेश के खंडवा जिले के खालवा ब्लॉक की रहने वाली दो कोरकू आदिवासी समुदाय की लड़कियां कर्म योगिनी बनी हैं. इन लड़कियों ने समाज की पुरातन परंपराओं को तोड़ते हुए आत्मनिर्भर बनने की नई मिसाल पेश की है. अपने गांव से दूर तहसील मुख्यालय पर यह लड़कियां मोटरसाइकिल रिपेयरिंग का गैराज चलाती हैं. इसी गैराज में एक काउंटर पर वह मोबाइल भी सुधारती है. इतना ही नहीं जब वह घर पहुंचती हैं तो गांव में महिलाओं का मेकअप भी कर देती है.
परिवार के लिए बनी आर्थिक स्तंभ
बता दें कि सांवली खेड़ा गांव यह इलाका खंडवा से करीब 55 किलोमीटर दूर है. इस ब्लॉक में 145 आदिवासी गांव हैं, जिनमें ज्यादातर कोरकू जनजाति समाज रहता है. मंटू और गायत्री भी कोरकू समाज से आती हैं, दोनों पढ़ी-लिखी हैं, लेकिन आर्थिक स्थिति खराब होने की वजह से इन्हें मजदूरी करना पड़ता था. गायत्री के परिवार में 4 भाई तीन बहनें माता-पिता सहित 9 सदस्य हैं और मंटू के परिवार में 6 सदस्य हैं. मजदूरी के अलावा आय का कोई साधन नहीं था. ऐसी स्थिति में यह लड़कियां परिवार के लिए आर्थिक स्तंभ बनकर खड़ी हुई, आज यह लगभग 500 रुपए रोज कमाती हैं.
50 लड़कियों को दिया गया था ट्रेनिंग
कई बार तो मजदूरी के लिए इन्हें अपने मां-बाप के साथ पलायन भी करना पड़ा. धीरे-धीरे पलायन इनकी जिंदगी में शामिल हो गया. लेकिन इनकी किस्मत में बदलाव कोरोना महामारी के कारण आया. कोरोना काल में जब यह वापस अपने गांव आयी तो इनके जैसी तमाम लड़कियों के सामने रोजी-रोटी और रोजगार का संकट आ खड़ा हुआ. सरकार भी ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को रोजगार से जोड़ने के लिए योजनाएं चला रही थी. इसी समय इस क्षेत्र में काम करने वाले एक स्व सहायता समूह स्पंदन सोसाइटी की नजर इन बच्चियों पर पड़ी. इन लड़कियों ने इस समूह की महिला अधिकारी के सामने अपनी व्यथा रखी. तब मसला निकल कर सामने आया कि इन्हें ऐसे काम की ट्रेनिंग दी जाए, जो इस क्षेत्र में नहीं हो और आय का साधन भी बने. तब स्पंदन समाज सेवी संस्था ने ऐसी 50 लड़कियों को जिला मुख्यालय पर मोटरसाइकिल, मोबाइल रिपेयरिंग और ब्यूटी पार्लर की ट्रेनिंग दी. इनमें से 47 लड़कियां आज अपनी परिवार के लिए आय का जरिया बनी हुई हैं और काम कर रही हैं.
लड़कियों के हौसले ने असंभव को किया संभव
इन कामों के अलावा कुछ लड़कियां पशु सखी का भी काम कर रही हैं. यह लड़कियां ग्रामीण क्षेत्रों में गाय, भैंस बकरी जैसे जानवरों का प्राइमरी इलाज भी करती हैं. इन लड़कियों ने बताया कि पहले समाज के अंदर ही उनके काम को लेकर कई सवाल खड़े हुए, किसी ने कहा नाजुक हाथों से गाड़ियों के पुर्जे कैसे खोलोगी, मुश्किल काम है कैसे संभव हो पाएगा. लेकिन इन लड़कियों के हौसले ने यह सब कुछ कर दिखाया.
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