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हीरामंडी की तरह मुंगलों ने MP भी बसाया था आलीशान कोठा, यहां रहती थीं बेहद खूबसूरत तवायफें

Mughal History of Tawaif: मध्य प्रदेश के बुरहानपुर में ताप्ती नदी के किनारे मुगल बादशाह अकबर के बेटे अपने मनोरंजन के लिए तवायफों को अपने साथ लेकर आए थे. शाहजहां, जहांगीर और औरंगजेब  भी बुरहानपुर  के तवायफों पर मोहित हो गए थे. 

 

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भारत में मुजरे का अपना एक अलग इतिहास है. प्राचीन काल में राजा महाराजाओं को संगीत और नृत्य देखने का शौक था. कहा जाता है मुजरा भारत में मुगल शासन के दौरान उभरा था. जो महिलाएं ही किया करती थीं. नवाब अपने दरबारों में मनोरंजन के लिए अक्सर तवायफों का नाच देखना पसंद करते थे. 

 

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16वीं सदी वह दौर था, जब मुगलों के संरक्षण में मुजरा बड़ी तेजी से फल-फूल रहा था. 16वीं सदी में बादशाह अकबर ने फारुखी बहादुरशाह को हराकर ताप्ती नदी के किनारे बसे शहर बुरहानपुर को अपने कब्जे में ले लिया था. अकबर ने बुरहानपुर की सता संभालने के लिए अपने बेटे मुरादशाह को भेजा था. 

 

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अकबर के बेटे मुरादशाह ने अपनी सभी जरूरी वस्तुओं और मुगल सेना के साथ अपने मनोरंजन के लिए तवायफों को भी अपने साथ बुरहानपुर लाया. बुरहानपुर में तवायफों के नृत्य से मनोरंजन किया करते थे. संगीत और नृत्य निपुण तवायफों के कार्यक्रम में मुरादशाह और उसके खास के लिए मनोरंजन की कमी नहीं थी. 

 

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शाहंशाह जहांगीर के बेटे शहजादा परवेज जब बुरहानपुर शहर आए थे तो उनके स्वागत में बुरहानपुर में अकबरी राय में सार्वजनिक मनोरंजन का एक भव्य आयोजन किया गया था. यह आयोजन शहर के सभी लोगों के लिए कराया गया था. यह पहली बार था जब आम जानता ने मुजरा देखा था. पूरे शहर ने मुजरे का लुत्फ उठाया.  

 

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सन् 1616 में बादशाह जहांगीर इन मुंजरे वालियों को बुरहानपुर के बोरवाड़ी क्षेत्र में बसाया था. उस समय मोती कुंवर, बेगम गुलारा जैसी तवायफों के पीछे बहशाह जहांगीर भी मोहित थे. जहांगीर मोती कुंवर के पीछे इतने दीवाने थे कि उन्होंने उनके लिए असीरगढ़ के पास एक सुंदर सा महल भी बनवाया था, जिसे मोती महल के नाम से भी जाना जाता है. 

 

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मोती कुंवर की तरह ही गुलारा बेगम के लिए भी जहांगीर ने उतावली नदी के किनारे गुलाका महल का निर्माण कराया. शाहंजहा जहांगीर संगीत और नृत्य देखने के बड़े शौकीन थे. ऐसा कहा जाता है कि उन्हें कला और कलाकारों से बहुत प्रेम था. उनके लिए आयोजित कार्यक्रम में संगीत और नृत्य करने वाली तवायफों को बादशाह जहांगीर मुंह मांगा इनाम दिया करते थे. 

 

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कट्टर छवि वाला मुगल बादशाह औरंगजेब भी मुजरे का शौकीन था. औरंगजेब भी बुरहानपुर शहर की एक हिन्दू तवायफ के प्रेम में पड़ गया था. उस हिन्दू तवायफ का नाम हीराबाई था. ऐसा कहा जाता है कि हीराबाई देखने में बला की खूबसूरत थी. 

 

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मुगलों के दौर में कलाकारों को सुसंस्कृत और उच्च तहजीब का माना जाता था. उस समय मनोरंजन के क्षेत्र में मुजरे की कला शीर्ष पर थी. बोरवाड़ी में आज भी मुजरे की परम्परा जारी है. फिल्मों की ही तरह यहां भी बड़े से हॉल में मुजरा कराया जाता है. 

 

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संजय लीला बंसाली की नई  वेब सीरीज हीरामंडी (Heeramandi) में भी तवायफों के बारे में दिखाया गया है. हीरामंडी में मुख्य किरदार में आपको सोनाक्षी सिन्हा,मनीषा कोइराला, अदिति राव हैदरी, ऋचा चड्ढा के साथ और भी कलाकार दिखेंगे.