रावण दहन को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक मानकर हम दशहरा का त्योहार पूरे जोश के साथ मनाते हैं।
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नई दिल्ली: रावण दहन को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक मानकर हम दशहरे का त्योहार पूरे जोश के साथ मनाते हैं।
दशहरे में रावण, कुंभकरण और मेघनाथ के पुतलों को जलाने की परंपरा से तो आप सब वाकिफ़ है पर भारत में कई ऐसी जगह हैं जहां दशहरा मनाने की परंपरा बिल्कुल अलग है।
जैसे कहीं पुतला तो बनाया जाता है पर जलाया नहीं जाता, तो कहीं पुतला बनाया ही नहीं जाता, और तो और कई ऐसी जगह हैं जहां रावण को दशहरे के दिन जलाया नहीं बल्कि पूजा जाता है।
तो आइये आपको भारत में दशहरे के अजब-गजब रंगों के बारे में बताते हैं:
1. मुंगेली का रावण जलता नहीं पिटता है
दशमी के दिन आपने रावण के पुतले को जलता तो देखा ही होगा पर अगर आप छत्तीसगढ़ के मुंगेली ज़िले में दशहरा मना रहे हैं तो यहां आपको रावण जलता नहीं पिटता दिखेगा।
यहां मिट्टी के रावण का पुतला बनाकर उसे पीट-पीटकर नष्ट किया जाता है। इस परंपरा के पीछे यहां के लोगों का तर्क ये है कि अहंकार को पीट-पीटकर ही नष्ट किया जाता है।
दरअसल, मुंगेली के मालगुजार गोवर्धन परिवार के पूर्वजों के द्वारा कई सालों से मिट्टी के रावण को पीटकर विजयादशमी मनाने की परंपरा रही है और आज भी मुंगेली में ये रीवाज़ जारी है।
जब रावण को नष्ट कर देते हैं तो रावण की मिट्टी लोग अपने घर लाते हैं। मान्यता के अनुसार घर के पूजा स्थान, धान की कोठरी और घर की तिजोरी जैसे स्थानों में रावण की मिट्टी रखने से धन-धान्य में बढ़ोतरी होती है।
2.यहां विजयादशमी पर रावण की होती है पूजा
जहां देशभर में विजयादशमी को बुराई पर अच्छाई की जीत के त्योहार के तरह मनाते हैं तो मध्य प्रदेश के मंदसौर में रावण की महाराज के रूप में पूजा की जाती है।
महिलाएं रावण की प्रतिमा के सामने से घूंघट लेकर निकलती हैं।
माना जाता है की ये शहर रावण का ससुराल है, तो भला ससुराल में जमाई राजा का स्वागत कैसे ना हो? अब राक्षस रावण आखिर कैसे मंदसौर के जमाई बने, ये भी आपको बताते हैं।
बड़े ही ठाठ-बाट से जमाई राजा रावण की ३१ फ़ीट ऊंची प्रतिमा की पूजा की जाती है। मान्यता के अनुसार मंदोदरी यहां की बेटी थी और इसी कारण इस शहर का नाम मंदसौर पड़ा, तो इसी नाते रावण यहां के दामाद हुएं।
3. पर्यावरण संरक्षण के लिए यहां बनता है मिट्टी का रावण
छत्तीसगढ़ के कोंडागांव में भी दशहरे के दिन मिट्टी का रावण बनाया जाता है। मिट्टी के बने रावण की नाभी में रंग डालकर रामलीला के मंचन के बाद मट्टी के रावण को वहीं नष्ट किया जाता है। लेकिन इस अनूठी परंपरा के पीछे तर्क जानकर आप कहेंगे कि दशहरा मनाओ तो ऐसे।
रावण दहन में विस्फोट होने से प्रकृति को नुकसान पहुंचता है साथ ही लकड़ियों का भी बहुत इस्तेमाल होता है जिससे जंगल के पेड़ों को लकड़ी के लिए काटना पड़ता है।
इन सभी बिंदुओं पर विचार कर यहां के लोगों ने कई साल पहले ये फ़ैसला किया कि पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना और वन संरक्षण करके यह दशहरा मनाएंगे।
और तबसे यहां ईको-फ़्रेंडली दशहरा मनाने की परंपरा शुरू हो गई।
4. नारायणपुर में दशहरे के बाद मनाया जाता है दशहरा
छत्तीसगढ़ के नारायणपुर ज़िले के बिंजली में लगभग 50 सालों से दशहरे का त्योहार दशहरे के एक दिन बाद मनाया जाता है यानि रावण दहन दशहरे के एक दिन बाद किया जाता है जिसे देखने के लिए सैकड़ो की भीड़ उमड़ती है| बिंजली के गांव में 25 फीट रावण का वध 12 अक्टूबर को होगा।
सच है, भारत की अनोखी परंपरा और त्योहार देश को अतुल्य बनाता है, तो ये थे कुछ अनोखे दशहरे के रंग-बिरंगे किस्से।
आप भी दिल खोल के विजयादशमी मनाएं और हृदय में राम को जगाकर अंदर बसे रावण का वध करें।