उज्जैन: व्यंग्यकार शरद जोशी ने कहा था, काश! हम 4-5 PM चुन लेते
Advertisement

उज्जैन: व्यंग्यकार शरद जोशी ने कहा था, काश! हम 4-5 PM चुन लेते

शरद जोशी की लोकप्रियता का सबसे अहम कारण उनके व्यंग्यों में मौजूद विरोध का स्वर और उनका आम लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़ा होना था.

उज्जैन: व्यंग्यकार शरद जोशी ने कहा था, काश! हम 4-5 PM चुन लेते

 'हमारे देश की आम जनता को पता लगना चाहिए कि उसने देश का प्रधानमंत्री नहीं चुना है, बल्कि विश्व नेता चुना है, जिसे दुनिया भर की समस्याएं सुलझाना है. हमारी संवैधानिक मजबूरी है कि हम एक ही प्रधानमंत्री विश्व को सप्लाई कर सकते हैं. काश, हम चार-पांच प्रधानमंत्री चुन लेते तब यह संभव होता कि उनमें से एक पीएम को हम देश के लिए रख लेते. संसार के देश तो चाहते हैं कि हमारा प्रधानमंत्री दुनिया भर में विश्व शांति पर भाषण दे पर प्रधानमंत्री पूरे साल देश से बाहर नहीं रह सकता. कभी लोकसभा का सत्र है तो कभी कश्मीर के चुनाव आ जाते हैं, तब प्रधानमंत्री को देश में लौटना पड़ता है'. 

यह बात प्रख्यात व्यंग्यकार शरद जोशी ने कई दशक पहले अपने एक व्यंग्य में लिखी थी, पर जब इस व्यंग्य रचना को आज के हालात से जोड़कर देखते हैं तो जोशी की यह प्रासंगिकता और सामयिकता ही उन्हें बड़ा रचनाकार बनाती है. शरद जोशी अपने समय के अनूठे व्यंग्य रचनाकार थे. कहा जाता है की वह पहले वह व्यंग्य नहीं लिखते थे, लेकिन बाद में उन्होंने अपनी आलोचना से परेशान होकर व्यंग्य लिखना शुरू कर दिया. उनके लिखे व्यंग्यों में इतना गहरा कटाक्ष होता था जो पाठकों को अंदर तक झकझोर देता था और लंबे समय तक सोचते रहने पर मजबूर कर देता था. उनकी लोकप्रियता का सबसे अहम कारण उनके व्यंग्यों में मौजूद विरोध का स्वर और उनका आम लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़ा होना था.

शरद जोशी ने 25 साल तक कविता के मंच से गद्य पाठ किया
शरद जोशी ने 25 साल तक कविता के मंच से गद्य पाठ किया. देहरादून के एक कवि सम्मेलन में किसी मसखरे ने कह दिया, 'शरद तू भांड बन गया है' इसके बाद ही जोशी ने कवि सम्मेलनों में व्यंग्य पाठ करना ही छोड़ दिया. वरिष्ठ कवि चंद्रकांत देवताले ने जोशी के लिए कहा था कि 'वैश्वीकरण और भ्रष्टाचार जैसी चुनौतियों के बीच कोई ऐसा व्यंग्यकार नहीं है जो हमें विनोद की बजाय चुटकी लेकर जगाए'.

शरद जोशी ने अपने लेखन के बारे में कहा था, लिखना मेरे लिए जीवन जीने की तरकीब है. इतना लिख लेने के बाद अपने लिखे को देख मैं सिर्फ यही कह पाता हूं कि चलो, इतने बरस जी लिया. यह न होता तो इसका क्या विकल्प होता, अब सोचना कठिन है. लेखन मेरा निजी उद्देश्य है.' जोशी अपने जीवन के बारे में कहते है कि, अब जीवन का विश्लेषण करना मुझे अजीब लगता है. बढ़-चढ़ कर यह कहना कि जीवन संघषर्मय रहा, लेखक होने के कारण मैंने दुखी जीवन जीया, कहना फिजूल है. जीवन होता ही संघषर्मय है. किसका नहीं होता? लिखनेवाले का होता है तो क्या अजब होता है.' 

लेखन के लिए छोड़ी सरकारी नौकरी
शरद जोशी का जन्म 21 मई, 1931 को मध्यप्रदेश के उज्जैन में हुआ था. जोशी का शुरू से लेखन की तरफ लगाव था, उन्होंने मध्यप्रदेश सरकार के सूचना एवं प्रकाशन विभाग में काम किया, लेकिन लेखन के लिए उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ दी, इसके बाद वह इंदौर में ही रहकर रेडियो और समाचारपत्रों के लिए लिखने लगे. उन्होंने कई कहानियां भी लिखीं, लेकिन उनको व्यंग्यकार के रूप में अधिक लोकप्रियता मिली.

चकल्लस पुरस्कार से सम्मानित
शरद जोशी भारत के पहले व्यंग्यकार थे, जिन्होंने पहली बार मुंबई में 'चकल्लस' के मंच पर, जहां हास्य कविताएं पढ़ी जाती थीं, गद्य पढ़ा और किसी कवि से अधिक लोकप्रिय हुए. वह चकल्लस पुरस्कार से सम्मानित हुए और हिंदी साहित्य समिति (इंदौर) द्वारा 'सास्वत मरतड' की उपाधि से नवाजे गए. 

फिल्मों और टीवी के लिए भी लिखी पटकथाएं
'परिक्रमा' 'दूसरी सतह', 'प्रतिदिन', और 'किसी बहाने' शरद जोशी की लिखी प्रमुख व्यंग्य-कृतियां हैं. उन्होंने 'क्षितिज', 'छोटी सी बात', 'सांच को आंच नहीं' और 'उत्सव' जैसी फिल्मों की पटकथा भी लिखी. उन्होंने टेलीविजन के लिए भी कई धारावाहिक लिखे. उनके लिखे धारावाहिक 'ये जो है जिंदगी', 'विक्रम बेताल', 'वाह जनाब', 'देवी जी', 'ये दुनिया गजब की', 'दाने अनार के' और 'लापतागंज' को कौन भूल सकता है.

मुंबई में निधन
उन्होंने 'मैं, मैं, केवल मैं' और 'उर्फ कमलमुख बी.ए.' जैसे उपन्यास भी लिखे. नई दुनिया, कादंबरी, ज्ञानोदय, रविवार, साप्ताहिक हिंदुस्तान, नवभारत टाइम्स जैसी पत्र-पत्रिकाओं के लिए भी उन्होंने नियमित स्तंभ और बहुत कुछ लिखा. मध्यप्रदेश सरकार ने इनके नाम पर 'शरद जोशी सम्मान' भी शुरू किया. शरद जोशी का 5 सितंबर, 1991 को मुंबई में निधन हो गया.

Trending news