Rajasthan Election: कांग्रेस का गढ़ रही मेड़ता सीट पर आज हनुमान बेनीवाल की पार्टी का कब्जा, क्या फिर हो पाएगा फतह
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Rajasthan Election: कांग्रेस का गढ़ रही मेड़ता सीट पर आज हनुमान बेनीवाल की पार्टी का कब्जा, क्या फिर हो पाएगा फतह

नागौर जिले की मेड़ता विधानसभा सीट पर मुकाबला बेहद रोमांचक देखने को मिल सकता है. 2018 के विधानसभा चुनाव में यहां चतुष्कोणीय मुकाबला था. चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस तीसरे और चौथे स्थान पर रही. जबकि हनुमान बेनीवाल की पार्टी से आने वाली इंदिरा देवी विधायक चुनी गई.

Rajasthan Election: कांग्रेस का गढ़ रही मेड़ता सीट पर आज हनुमान बेनीवाल की पार्टी का कब्जा, क्या फिर हो पाएगा फतह

Merta Vidhansabha Seat : नागौर जिले की मेड़ता विधानसभा सीट पर मुकाबला बेहद रोमांचक देखने को मिल सकता है. 2018 के विधानसभा चुनाव में यहां चतुष्कोणीय मुकाबला था. चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस तीसरे और चौथे स्थान पर रही. जबकि हनुमान बेनीवाल की पार्टी से आने वाली इंदिरा देवी विधायक चुनी गई. 2023 के विधानसभा चुनाव में भी मुकाबला रोमांचक देखने को मिल सकता है.

खासियत

मेड़ता विधानसभा सीट से पहले विधायक नाथूराम मिर्धा चुने गए थे. 1952 में उन्होंने यहां से कांग्रेस को जीत दिलवाई थी. मिर्धा मेड़ता से कुल 3 बार विधायक रहे हालांकि लगातार तीन बार जीतने का रिकॉर्ड यानी हैट्रिक बनाने का रिकॉर्ड मेड़ता की सियासत के चाणक्य कहे जाने वाले रामलाल बग्गड़ के नाम रहा, बग्गड़ 1972, 1977 और 1980 में लगातार तीन चुनाव जीते. हालांकि नाथूराम मिर्धा भी तीन बार यहां से विधायक रहे. लेकिन वह कभी भी लगाता चुनाव जीतने में कामयाब नहीं हो सके. 1952 और 1962 में उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. इसके बाद 1985 में कांग्रेस ने उनका टिकट काट दिया जिसके बाद वह निर्दलीय ही लोक दल के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरे और जीत हासिल की. मिर्धा को 1967 में स्वतंत्र पार्टी के गोवर्धन दास सोनी से भी शिकस्त का सामना करना पड़ा. 

सबसे बड़ी जीत-हार

मेड़ता विधानसभा सीट पर 2013 तक सबसे बड़ी जीत का रिकॉर्ड नाथूराम मिर्धा के नाम था. जिसे 2013 में सुखाराम नेतड़िया ने तोड़ दिया. सुखराम ने 35,000 से अधिक मतों के अंतर से जीत हासिल की. जबकि 1985 में नाथूराम मिर्धा ने 22,399 मतों के अंतर से जीत हासिल कर सर्वाधिक मतों से चुनाव जीतने का रिकॉर्ड बनाया था. उन्होंने कांग्रेस के उम्मीदवार बाबू खान वार्सी को धूल चटा दी थी.

तीन दशक से मेड़ता MLA नहीं बन पाया मंत्री

मेड़ता विधानसभा सीट से जीतने वाले विधायक पिछले तीन दशक से मंत्री पद पर नहीं पहुंच पाए हैं. 1993 में भैरव सिंह शेखावत सरकार के दौरान भंवर सिंह डांगावास को भूजल और गृह राज्य मंत्री का सीमा दिया गया था, लेकिन पिछले 30 साल से मेड़ता से चुने जाने वाला विधायक मंत्रिमंडल में जगह नहीं बन पाया 1993 के बाद मांगीलाल डंगा, भंवर सिंह, रामचंद्र, सुखराम और इंदिरा देवी विधायक बन चुके हैं. लेकिन इनमें से किसी भी नेता को मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली. 2013 से 2018 के बीच भाजपा की सरकार रही. इस दौरान यहां से भाजपा के सुखाराम विधायक रहे, लेकिन वह भी मंत्रिमंडल में जगह नहीं बना सके.

मेड़ता विधानसभा सीट का इतिहास

पहला विधानसभा चुनाव 1952

1952 के विधानसभा चुनाव में मेड़ता ईस्ट और वेस्ट दो हिस्सों में बटी हुई थी. मेड़ता वेस्ट से कांग्रेस के नाथूराम मिर्धा चुनावी मैदान में उतरे थे तो वहीं राम राज्य परिषद की ओर से गणपत सिंह ने चुनावी ताल ठोकी थी. वहीं निर्दलीय के तौर पर रामकिशन भी चुनावी मैदान में उतरे थे. इस चुनाव में कांग्रेस के नाथूराम मिर्धा की जीत हुई और उन्हें 13,118 मतदाताओं का साथ मिला. जबकि राम राज्य परिषद के गणपत सिंह को 10,581 मतदाताओं ने अपना समर्थन दिया. इसके साथ ही नाथूराम मिर्धा मेड़ता से पहले विधायक चुने गए.

दूसरा विधानसभा चुनाव 1957

मेड़ता के दूसरे विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से गोपाल लाल चुनावी मैदान में उतरे तो वहीं निर्दलीय के तौर पर रामकृष्ण ने उन्हें चुनौती दी. यह बेहद करीबी मुकाबला रहा. इस चुनाव में रामकृष्ण के पक्ष में 8,036 मतदाताओं ने मतदान किया तो वहीं कांग्रेस के गोपाल लाल को 8,940 मतदाताओं ने अपना समर्थन दिया. इसके साथ ही गोपाल लाल की जीत हुई.

तीसरा विधानसभा चुनाव 1962

1962 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर नाथूराम मिर्धा चुनावी ताल ठोकने उतरे. इस चुनाव में उन्हें निर्दलीय के तौर पर उतरे एहसान अली से कड़ी चुनौती मिली. हालांकि नाथूराम मिर्धा के हाथों एहसान अली को सियासी शिकस्त का सामना करना पड़ा और उन्हें सिर्फ 12,658 मत मिले. जबकि नाथूराम मिर्धा को 18,871 मतदाताओं ने अपना समर्थन दिया. इसके साथ ही नाथूराम मिर्धा एक बार फिर मेड़ता का प्रतिनिधित्व करने राजस्थान विधानसभा पहुंचे.

चौथा विधानसभा चुनाव 1967

1967 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर नाथूराम मिर्धा कांग्रेस की ओर से चुनावी ताल ठोकने उतरे तो वहीं स्वराज पार्टी के गोवर्धन ने उनके सामने चुनौती पेश की. इस बेहद करीबी मुकाबले में नाथूराम मिर्धा को 22,458 वोट मिले तो वहीं गोवर्धन को 23,169 मतदाताओं ने अपना समर्थन दिया. इसके साथ ही नाथूराम मिर्धा की इस चुनाव में हार हुई और गोवर्धन राजस्थान विधानसभा पहुंचे.

पांचवा विधानसभा चुनाव 1972

1972 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से रामलाल बग्गड़ चुनावी मैदान में उतरे. जबकि निर्दलीय के तौर पर रामचंद्र ने उन्हें चुनौती दी. इस चुनाव में रामलाल बग्गड़ के पक्ष में 29,409 वोट पड़े तो वहीं रामचंद्र को 18,551 मतों से संतोष करना पड़ा.

छठ विधानसभा चुनाव 1977

1977 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर रामलाल बग्गड़ कांग्रेस के टिकट पर किस्मत आजमाने उतरे तो वहीं जनता पार्टी की ओर से गोवर्धन सोनी ने ताल ठोकी. इस चुनाव में गोवर्धन सोनी के पक्ष में 24,326 मतदाताओं ने मतदान किया तो वहीं रामलाल बग्गड़ को 29,819 मतदाताओं का साथ मिला और इसके साथ ही रामलाल की इस चुनाव में जीत हुई.

सातवां विधानसभा चुनाव 1980

1980 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस बुरी तरह से गुटबाजी से जूझ रही थी इस चुनाव में कांग्रेस बनाम कांग्रेस का मुकाबला देखने को मिला. जहां कांग्रेस (यू) की ओर से रामलाल उम्मीदवार बने तो वहीं कांग्रेस (आई) की ओर से रामचंद्र ने ताल ठोकी. इस चुनाव में रामचंद्र के पक्ष में 23,030 मतदाताओं ने मतदान किया तो वहीं रामलाल को 29,178 वोटों से जीत हासिल हुई. इसके साथ ही रामलाल लगातार तीसरी बार मेड़ता से विधायक चुने गए.

आठवां विधानसभा चुनाव 1985

1985 का विधानसभा चुनाव बेहद दिलचस्प रहा. क्योंकि इस चुनाव में तीन बार इस सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले नाथूराम मिर्धा ने लोक दल के टिकट पर ताल ठोकी. जबकि कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बदलते हुए बाबू खान वार्सी को चुनावी मैदान में उतारा. इस चुनाव में बाबूलाल वार्सी के पक्ष में 27,862 वोट पड़े तो वहीं लोकल के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले नाथूराम मिर्धा 5,261 मतों के साथ विजय हुए. इसके साथ ही नाथूराम मिर्धा इस सीट से तीसरी बार विधायक बनने वाले दूसरे नेता बने.

आठवां विधानसभा चुनाव 1990

1990 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने मांगीलाल को टिकट दिया तो वहीं निर्दलीय के तौर पर शिव दान सिंह चुनावी मैदान में उतरे वहीं जनता दल ने राम करण को टिकट दिया. यह चुनाव त्रिकोणीय होने वाला था. इस चुनाव में जनता दल के रामकरण को 38 फ़ीसदी के साथ 34,068 मतदाताओं ने वोट दिया तो वहीं निर्दलीय उम्मीदवार शिवदान को 33% मतदाताओं का ही साथ मिला. जबकि कांग्रेस के मांगीलाल 23 फ़ीसदी वोट के साथ तीसरे स्थान पर रहे. 

9वां विधानसभा चुनाव 1993

1993 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने प्रेम सुख मिर्धा को टिकट दिया तो वहीं बीजेपी की ओर से भंवर सिंह चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में कांग्रेस के प्रेम सुख मिर्धा को 35,309 मतदाताओं का साथ मिला तो वही भंवर सिंह 43,794 वोटों के साथ जीत हासिल करने में कामयाब हुए. 

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11वां विधानसभा चुनाव 1998

1998 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने फिर अपना उम्मीदवार बदला और अब मांगीलाल डंगा को टिकट दिया. इस चुनाव में बीजेपी की ओर से एक बार फिर भंवर सिंह ही चुनावी मैदान में उतरे. लेकिन लंबे वक्त बाद कांग्रेस का दांव भारी पड़ा और बीजेपी के भंवर सिंह 28,100 मत पाकर भी चुनाव हार गए. जबकि कांग्रेस के मांगीलाल डंगा 30483 वोटों के साथ चुनाव जीतने में कामयाब हुए.

12वां विधानसभा चुनाव 2003

2003 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने फिर से मांगीलाल डंगा पर ही दांव खेला तो वहीं बीजेपी की ओर से भंवर सिंह को एक बार फिर टिकट दिया गया यानी मुकाबला एक बार फिर मांगीलाल वर्सेस भंवर सिंह के बीच था. इस चुनाव में भंवर सिंह के पक्ष में 59,470 वोट पड़े तो वहीं कांग्रेस के मांगीलाल को 42,028 मतदाताओं का ही समर्थन प्राप्त हो सका. इसके साथ ही भंवर सिंह दूसरी बार चुनाव जीतने में कामयाब हुए.

उपचुनाव 2004

मेड़ता से विधायक रहते हुए भंवर सिंह ने 2004 का लोकसभा चुनाव लड़ा और वह नागौर से सांसद चुने गए. लिहाजा मेड़ता विधानसभा सीट पर उपचुनाव कराने पड़े. इस उपचुनाव में बीजेपी ने लगातार तीन बार सांसद रहे रामलाल बग्गड़ के पुत्र राम प्रताप बग्गड़ को टिकट दिया जबकि कांग्रेस ने रामचंद्र को चुनावी मैदान में उतारा. इस चुनाव में रामप्रताप बग्गड़ की हार हुई और उन्हें 49,886 मत मिले जबकि कांग्रेस के रामचंद्र को 55,150 मतदाताओं ने अपना समर्थन दिया और उनकी जीत हुई.

13वां विधानसभा चुनाव 2008

2008 के विधानसभा चुनाव से पहले हुए परिसीमन ने यहां का सियासी गणित बदल दिया. 1952 से 2004 तक सामान्य सामान्य वर्ग की रही मेड़ता सीट अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित कर दी गई. लिहाजा ऐसे में पुराने दावेदारों को अपना दांव छोड़ना पड़ा और उसकी जगह नए उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतरे. कांग्रेस ने पंचराम इंदावर को टिकट दिया तो वहीं बीजेपी की ओर से सुखाराम नेतड़िया को टिकट दिया गया. इस चुनाव में कांग्रेस के पंचराम इंदावर को 34436 मतदाताओं का साथ मिला तो वही बीजेपी के सुखाराम नेतड़िया को 58476 मतदाताओं ने समर्थन देकर जिताया इसके साथ ही सुखाराम नेतड़िया ने दिया मेड़ता का प्रतिनिधित्व करने राजस्थान विधानसभा पहुंचे.

14वां विधानसभा चुनाव 2013

2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने अपना उम्मीदवार रिपीट करते हुए सुखाराम नेतड़िया को चुनावी मैदान में उतारा तो वहीं कांग्रेस ने रणनीति बदलते हुए पंचराम इंदावर की जगह लक्ष्मण राम को चुनावी मैदान में उतारा. इस चुनाव में कांग्रेस के पक्ष में 42,520 मत पड़े तो वहीं बीजेपी के उम्मीदवार सुखाराम को 78,069 वोट मिले. इसके साथ ही सुखाराम एक बार जीतकर राजस्थान विधानसभा पहुंचे.

15वां विधानसभा चुनाव 2018

2018 के विधानसभा चुनाव में कड़ा मुकाबला दो नहीं, तीन नहीं, बल्कि चार उम्मीदवारों के बीच देखने को मिला यानी यह चुनाव चतुष्कोणीय था. इस चुनाव में जहां कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बदलते हुए एक महिला उम्मीदवार पर दांव खेला और सोनू चैत्र को टिकट दिया तो वहीं बीजेपी की ओर से भंवर राम चुनावी मैदान में उतरे. जबकि लक्ष्मण राम मेघवाल ने निर्दलीय ही ताल ठोक दी. वहीं इस मुकाबले को सबसे रोचक हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी ने बनाया. इस चुनाव में आरएलपी की ओर से इंदिरा देवी उम्मीदवार बनी. इस बेहद ही रोमांचक मुकाबले में 32 फ़ीसदी के साथ 57,662 मतों के साथ आरएलपी की इंदिरा देवी विजय हुई. साथ ही इंदिरा देवी मेड़ता की पहली महिला विधायक भी चुनी गई. इस चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार लक्ष्मण राम दूसरे स्थान पर, बीजेपी के भंवर राम तीसरे स्थान पर और कांग्रेस के सोनू चैत्र चौथे स्थान पर रहे.

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