कोटा: इंजीनियर बनने का सपना देख रहा आपका बच्चा कहीं तनाव में टूट तो नहीं रहा...
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कोटा: इंजीनियर बनने का सपना देख रहा आपका बच्चा कहीं तनाव में टूट तो नहीं रहा...

32% लोगों का कहना है कि वे दिन में अधिकतर समय परेशान रहते हैं.

प्रशासन अब तक आत्महत्या को रोकने के लिए काउंसिलिंग को लेकर कोई नियम नहीं बना पाया है.(प्रतीकात्मक तस्वीर)

नई दिल्ली: देश में कोटा की पहचान प्रतियोगी परीक्षाओं की कोचिंग सेंटर के रूप में है. जिसे कोचिंग का हब भी कहा जाता है. देश भर के हजारों बच्चे यहां मेडिकल और इंजीनियरिंग की तैयारी करते हैं. परीक्षा में सफलता नहीं मिलने के कारण यहां से छात्रों की आत्महत्या की ख़बरें अक्सर आती हैं. प्रशासन भी अब तक ऐसी आत्महत्या को रोकने के लिए काउंसिलिंग को लेकर कोई नियम नहीं बना पाया है. कोटा में कोचिंग ले रहे छात्रों में खुदकुशी की बढ़ती घटनाएं सबके लिए चिंता का विषय बनती जा रही हैं. अभिभावक अपने बच्चे के भविष्य के लिए मां-बाप मोटी फीस भर कर बच्चों को कोटा भेजते हैं. ऐसे में बच्चों के ऊपर सफल होन का दबाव रहता है.

पढ़ाई का दबाव और परीक्षा में फेल होने के डर से बच्चों के अंदर आत्महत्या, आत्महत्या, नशे का सेवन, अपराध, नींद से संबंधित समस्या, अकेलापन, अवसाद, चिंता, बढ़ रही हैं. छात्रों में बढ़ती आत्महत्या की समस्याओं ने लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया है. टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज ने कोटा के छात्रों में बढ़ती आत्महत्या पर कोटा जिला प्रशासन को एक रिपोर्ट तैयार करके दी है.

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जिसमें कहा गया है कि जो भी माता-पिता अपने बच्चों को कोटा भेजना चाहते है तो सबसे पहले वह अपने बच्चों को शुरूआत से ही एक अच्छा वातावरण दें. बच्चों से उनके सपने पूछे. उनके पंसद और उनके सपनो के बारें में बात करें. कोटा सभी बच्चों के लिए ठीक जगह नहीं है. अभिभावक सबसे पहले बच्चों के प्रतिभा को पहचाने फिर कोटा भेजें. रिपोर्ट के अनुसार कोचिंग सेंटर में पढ़ने-पढ़ाने का वातावरण सकारात्मक रखना होगा. कोचिंग सेंटर परीक्षा परिणाम में में पास हुए छात्रों की संख्या में सत्यता रखें . कोचिंग सेंटर में डांस, संगीत की वर्कशाप कराई जाए. बच्चों को अंक को लेकर प्रतिर्स्पधा न कराएं. कोचिंग सेंटर में एक ऐसा माहोल तैयार करें जहां बच्चे अपने आपको प्रस्तुत कर सके. अपनी समस्या लोगों को बता सके. 2013 से लेकर मई 2017 के बीच कोटा जिले में 58 छात्र-छात्राओं ने आत्महत्याएं की हैं.

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88 बच्चों ने 2011 और 2014 के बीच कोटा में की आत्महत्या
बहुत सारे मामले में पुलिस रिकॉर्ड ही नहीं देती. परीक्षाओं में असफल रहने के कारण 88 बच्चों ने 2011 और 2014 के बीच कोट में आत्महत्या की है. रिपोर्ट के अनुसार हर साल लगभग 1.5 लाख से दो लाख छात्र कोटा में इंजीनियरिंग या मेडिकल कॉलेज में प्रवेश करने के लिए आते हैं. जो पूरे देश के अलग- अलग जगह से होते हैं. इन बच्चों के लिए कोटा नई जगह होती है.

बच्चों के लिए सबसे बड़ी समस्या खाने को लेकर होती है
बच्चों के लिए सबसे बड़ी समस्या कोटा शहर में रहने -खाने और पढ़ने की होती है. टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के शोध में टीआईएसएस स्कूल के ह्यूमन इकोलोजी डिपार्टमेंट की डीन सुजाता श्रीराम, सहायक प्रोफेसर चेतना दुग्गल, काउंसलर निखार राणावत और परामर्शदाता मनोचिकित्सक राजश्री फरीआ शामिल थी. इन लोगों ने एक डेटा तैयार किया जिसमें छात्रों से फार्म भरने की बात कही गई थी.

42% लोगों ने घबराहट, डरे हुए और खुद को चिंतित महसूस किया है
जिसमें 42% लोगों ने घबराहट, डरे हुए और खुद को चिंतित महसूस किया है. 42% लोगों का कहना है कि वे आसानी से नाराज या चिड़चिड़े महसूस करते हैं. 32% लोगों का कहना है कि वे दिन में अधिकतर समय परेशान रहते हैं. 28% लोगों ने कहा कि उनमें निराशा और असहाय भावनाएं व्यापत है. 27% लोग असफलता और परिवार के छोड़ने की गंभीर चिंताओं से परेशान नजर आए.कई छात्रों ने नींद से संबंधित समस्याओं को भी बताया. बहुत सारे बच्चों ने खुद को थका हुआ महसूस बताया. बहुत सारे लोगों को भोजन, भूख और वजन के नुकसान से समस्या थी. लगभग एक तिहाई महिला छात्रों ने मासिक धर्म की समस्याओं के बारे में बात की. 

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