Ajmer Lok Sabha seat: अजमेर में 26 अप्रैल को लोकसभा चुनाव की वोटिंग, समझिए यहां का समीकरण, क्या दलित बनेंगे 'किंग मेकर'
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Ajmer Lok Sabha seat: अजमेर में 26 अप्रैल को लोकसभा चुनाव की वोटिंग, समझिए यहां का समीकरण, क्या दलित बनेंगे 'किंग मेकर'

Ajmer Lok Sabha seat : लोकसभा चुनाव 2024 के रण में दूसरे चरण के मतदान में प्रदेश की 13 सीटों पर होने वाले मतदान में अजमेर सीट भी शामिल हैं. अजमेर सीट पर अब चौधरी बनाम चौधरी का मुकाबला है. वहीं अजमेर की जनता भी काफी दिलचस्प है क्योंकि यहां जनता हर बार अपना विकल्प बदल देती है. यानी एक बार कांग्रेस तो एक बार बीजेपी उम्मीदवार के जीतने की परंपरा चली आ रही है. 

Ajmer Lok Sabha seat: अजमेर में 26 अप्रैल को लोकसभा चुनाव की वोटिंग, समझिए यहां का समीकरण, क्या दलित बनेंगे 'किंग मेकर'

Ajmer Lok Sabha seat : लोकसभा चुनाव 2024 के रण में दूसरे चरण के मतदान में प्रदेश की 13 सीटों पर होने वाले मतदान में अजमेर सीट भी शामिल हैं. अजमेर संसदीय सीट का इतिहास भाजपा कांग्रेस दोनो के पक्ष में लगभग बराबर जैसा ही रहा हैं.

अजमेर के इतिहास की बात करे तो राजस्थान में विलय से पहले अजमेर खुद एक राज्य था लेकिन 1956 में इसका विलय राजस्थान राज्य में हुआ. अरावली पर्वतमालाओं के बीच में बसा यह शहर अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व के लिए जाना जाता है. विश्व विख्यात महान सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती जिन्हे गरीब नवाज भी कहा जाता है इनकी दरगाह यहां है तो सृष्टि के रचियता भगवान ब्रह्मा की नगरी पुष्कर भी अजमेर संसदीय क्षेत में है.

इतना ही नहीं, यह नगरी अंतिम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान की नगरी भी रही है. पिछले तीन चुनाव नतीजों की बात करे तो तो साल 2009 के लोकसभा चुनाव में यहां से दोनो ही दलों ने बाहरी प्रत्याशी उतारे थे. कांग्रेस से सचिन पायलट तो भाजपा से दिवंगत नेत्री किरण महेश्वरी मैदान में थे. यह चुनाव सचिन पायलट ने 70 हजार वोटों के अंतर से जीता था और यूपीए टू में मंत्री बने थे.

इसके बाद साल 2014 के चुनाव में कांग्रेस ने फिर पायलट पर दांव खेला तो भाजपा ने अपने कद्दावर जाट नेता रहे स्व सांवरलाल जाट को टिकट दिया. भाजपा ने यह चुनाव डेढ़ लाख से अधिक वोटो से जीता, लेकिन जाट अपना कार्यकाल पूरा नहीं पाए और उनका निधन होने से 2018 में हुए उपचुनाव में कांग्रेस के रघु शर्मा मैदान में उतरे तो भाजपा ने सांवरलाल के बेटे और मौजूदा विधायक रामस्वरूप लांबा को मैदान में उतारा लेकिन लांबा सहानुभूति वोट नहीं ले पाए और उपचुनाव में कांग्रेस ने जीत हासिल की.

इसके बाद साल 2019 में हुए आमचुनाव में भाजपा ने भागीरथ चौधरी को प्रत्याशी बनाया तो कांग्रेस ने रिजु झुनझुनवाला को और इस चुनाव में भागीरथ चौधरी रिकॉर्ड 4लाख 16 हजार मतों के अंतर से चुनाव जीत गए. अब 2024के रण में भाजपा ने फिर से भागीरथ चौधरी पर दांव खेला है तो कांग्रेस ने अपने सबसे वरिष्ठ कार्यकर्ता डेयरी अध्यक्ष रामचंद्र चौधरी को प्रत्याशी बनाया है.

अजमेर लोकसभा सीट में साढ़े 19 लाख के करीब मतदाता है जिन्हें अगर जातिगत रूप से देखा जाए तो सर्वाधिक मतदाता अनुसूचित जाति वर्ग से है जिनकी संख्या 4 से साढ़े 4 लाख के करीब है. इसके बाद मुस्लिम मतदाताओं की संख्या करीब 2.50 से तीन लाख है. गुर्जर और जाट समाज के मतदाताओं की संख्या करीब समान है और यह सवा दो से ढाई लाख के बीच है.

ब्राह्मण मतदाता एक से डेढ़ लाख के बीच और वैश्य समाज के मतदाता करीब एक लाख है. इसके अलावा माली और सिंधी समाज के मतदाता भी 70 से 80 हजार के बीच है. मौजूदा प्रत्याशियों की ताकत और कमजोरी की बात करे तो भाजपा उम्मीदवार भागीरथ चौधरी की सबसे बड़ी ताकत संगठन है. इसके अलावा संसदीय सीट की 8 में से 7 सीटों पर भाजपा के विधायक होना भी है.

पीएम मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ना भी उनकी एक ताकत का ही हिस्सा हैं. वहीं अगर कमजोरी की बात करे तो पिछले पांच साल के सांसद कार्यकाल में कोई बड़ी उपलब्धि उनके नाम नहीं है. किशनगढ़ विधानसभा क्षेत्र तक सीमित रहना भी उनका एक कमजोर पक्ष है. इसके अलावा हाल के विधानसभा चुनाव में उनकी करारी हार भी एक कमजोर पहलू है जहां वे तीसरे स्थान पर रहे थे.

वहीं कांग्रेस प्रत्याशी रामचंद्र चौधरी के मजबूत पक्ष की बात करे तो जातिगत और कांग्रेस का वोट बैंक उनके ताकत है, साथ ही पिछले 35 साल से सहकारिता क्षेत्र में रहते हुए बतौर अजमेर डेयरी अध्यक्ष रहते हुए जमीनी नेटवर्क पर अच्छी पकड़ भी हैं, लेकिन कमजोर पहलू यह है की अजमेर में संगठन का अभाव और आपसी गुटबाजी चरम पर हैं. मतदाताओं और कार्यकर्ताओं से सीधा संपर्क और संवाद भी नहीं है. चुनावी मुद्दे जो इस बार हावी है उसमे अजमेर के समग्र विकास के साथ ही औद्योगिक विकास और धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देना है. साथ ही शहर की सूरत और सीरत को भी दुरूस्त करना एक बड़ा मुद्दा है.

 

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