अयोध्या राम मंदिर मुद्दा: मुस्लिम बोर्ड पिछले रुख पर कायम, मस्जिद की जमीन किसी को नहीं दी जा सकती
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अयोध्या राम मंदिर मुद्दा: मुस्लिम बोर्ड पिछले रुख पर कायम, मस्जिद की जमीन किसी को नहीं दी जा सकती

बयान में बोर्ड ने एक बार फिर शरिया के मौलिक स्तर पर जोर दिया कि मस्जिद के लिए समर्पित जमीन को न तो बेचा जा सकता, न उपहार में दिया जा सकता और ना ही इसे त्यागा जा सकता.

अयोध्या राम मंदिर मुद्दा: मुस्लिम बोर्ड पिछले रुख पर कायम, मस्जिद की जमीन किसी को नहीं दी जा सकती

हैदराबाद: ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने शुक्रवार (9 फरवरी) को बाबरी मस्जिद राम जन्मभूमि विवाद पर अपना पूर्व का रुख दोहराते हुए कहा कि मस्जिद के लिए समर्पित जमीन न तो बेची जा सकती, न उपहार में दी जा सकती और इसे ना ही त्यागा जा सकता. बोर्ड की कार्यकारी समिति ने 9 फरवरी की शाम यहां बैठक की. बाद में जारी बयान में बोर्ड ने एक बार फिर शरिया के मौलिक स्तर पर जोर दिया कि मस्जिद के लिए समर्पित जमीन को न तो बेचा जा सकता, न उपहार में दिया जा सकता और ना ही इसे त्यागा जा सकता. बयान बोर्ड के सचिव मौलाना उमरैन महफूज रहमानी ने जारी किया. उनके साथ एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी भी मौजूद थे.

  1. बोर्ड की कार्यकारी समिति ने 9 फरवरी की शाम हैदराबाद में बैठक की.
  2. बयान बोर्ड के सचिव मौलाना उमरैन महफूज रहमानी ने जारी किया.
  3. उनके साथ एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी भी मौजूद थे.

अयोध्या मामले को सिर्फ भूमि विवाद की तरह देखा जाए: सुप्रीम कोर्ट

उच्चतम न्यायालय ने बीते 8 फरवरी को कहा कि राजनीतिक रूप से संवेदनशील राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मुद्दा पूरी तरह से ‘‘भूमि विवाद’’ का मामला है और इसे सामान्य प्रक्रिया के तहत निपटाया जाएगा. अयोध्या विवाद पर न्यायालय द्वारा अंतिम सुनवाई शुरू किए जाने के साथ ही अलग-अलग पक्षों की ओर से पेश दो वरिष्ठ अधिवक्ताओं के बीच तब तीखी बहस हुई जब उनमें से एक ने सुझाव दिया कि उन्हें अपनी संभावित दलीलों के सार का आदान-प्रदान करना चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट ने बताया भूमि विवाद
न्यायालय ने एक घंटे तक चली सुनवाई के दौरान यह भी स्पष्ट किया कि पहले वह उन्हें सुनना चाहता है जो इलाहाबाद उच्च न्यायालय में विवाद से जुड़े पक्ष थे. शीर्ष अदालत ने आगे कहा कि जिन्होंने उसके समक्ष मामले में जुड़ने और खुद को पक्ष बनाए जाने की मांग की है, उन्हें इंतजार करना होगा क्योंकि उसके समक्ष आया मुद्दा ‘‘पूरी तरह से भूमि विवाद’’ का मामला है. प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली एक विशेष पीठ इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के 2010 के फैसले के परिप्रेक्ष्य में दीवानी अपीलों पर सुनवाई कर रही थी. उच्च न्यायालय ने 2:1 के बहुमत के फैसले में विवादित भूमि को तीन पक्षों- रामलला, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड के बीच बराबर बांटने का आदेश दिया था. पीठ में न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एसए नजीर भी हैं.

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