कैराना लोकसभा उपचुनाव: जानिए कैसे घर बैठे ही जीत गई अखिलेश-माया की जोड़ी!
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कैराना लोकसभा उपचुनाव: जानिए कैसे घर बैठे ही जीत गई अखिलेश-माया की जोड़ी!

गठबंधन की तरफ से सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और बसपा अध्यक्ष मायावती कैराना में एक बार भी नहीं आए. 

कैराना लोकसभा उपचुनाव: जानिए कैसे घर बैठे ही जीत गई अखिलेश-माया की जोड़ी!

नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश कैराना विधानसभा सीट पर अजित सिंह के राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) की धमाकेदार जीत अगर बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती है तो विपक्षी एकता की संजीवनी भी है. खास बात यह रही कि बीजेपी के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने रैलियां कीं और उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने कैराना में डेरा डाले रखा और केंद्रीय मंत्रियों की टोली लगी रही, वहीं गठबंधन की तरफ से सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और बसपा अध्यक्ष मायावती यहां एक बार आए तक नहीं. 

कांग्रेस ने आरएलडी को अपना समर्थन तो दिया, लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने खुद को इस चुनाव से पूरी तरह दूर रखा, वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ईस्टर्न पेरीफेरल रोड के उद्घाटन के बहाने मतदान से एक दिन पहले बागपत में थे.

ऐसे में सवाल उठता है कि बीजेपी पूरी ताकत लगाकर चुनाव हार गई, जबकि विपक्षी एकता ने सिर्फ अजित सिंह और जयंत चौधरी को मैदान में उतारकर जीत हासिल कर ली. इस जीत के 5 बड़े कारण यह दिखाई देते हैं:

1. जाट स्वाभिमान: लंबे समय से राजनीति के हाशिये की तरफ बढ़ रहे अजित सिंह जब जाट समुदाय के लोगों के पास पहुंचे तो यह एक भावुक क्षण था. देवतुल्य चौधरी चरण सिंह के बेटे को गली-गली भटकता देख जाट समुदाय का दिल पसीज गया. उन्होंने बीजेपी का हिंदुत्व का एजेंडा छोड़ वापस चौधरी परिवार में जाट स्वाभिमान देखा. जाटों ने आरएलडी को वोट किया.

2. मुसलमानों के लिए आई सपा: सपा ने न सिर्फ आरएलडी को समर्थन दिया, बल्कि कैराना के अपने विधायक नाहिद हसन की मां तबस्सुम हसन को प्रत्याशी के तौर पर आरएलडी को दिया. पिछले लोकसभा और पिछले विधानसभा दोनों चुनाव में इलाके के मुसलमानों ने बड़ी संख्या में सपा को वोट दिया था. इस नई पहल से सपा ने प्रत्याशी के साथ 5 लाख मुस्लिम वोटरों की टोकरी भी अजित सिंह को दी.

3. मायावती लाईं दलित वोटर: मायावती भले ही चुनाव में नहीं आईं, लेकिन उन्होंने दो लाख से अधिक वोटरों का चंक एक साथ आरएलडी के लिए ट्रांसफर करा दिया. इनमें से बहुत से वोटरों ने 2017 विधानसभा चुनाव में बीजेपी को वोट दिया था. इससे गठबंधन के हौसले बुलंद हो गए.

4. जाट दलित और मुस्लिम का नया गठबंधन: अजित सिंह की राजनीति लंबे समय से जाट-मुस्लिम गठबंधन पर चलती थी. और उनकी सियासत तभी डूबी जब मुसलमान सपा में और जाट बीजेपी में चला गया. लेकिन महागठबंधन में उन्हें जाट और मुस्लिम के अलावा दलित वोट बोनस में मिल गया.

5. कंवर ने दिया खून का साथ: उपचुनाव में सारे समीकरण सेट करने के बाद गठबंधन की सबसे बड़ी समस्या तबस्सुम हसन के देवर कंवर हसन की निर्दलीय दावेदारी थी. कंवर पिछले लोकसभा चुनाव में 1.66 लाख वोट पा गए थे. लेकिन वोटिंग से तीन दिन पहले कंवर के चुनाव से हट जाने से गठबंधन की राह की आखिरी बाधा भी दूर हो गई. और अखिलेश-माया ने घर बैठे-बैठे ही चुनाव जीत लिया.

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