2019 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी के लिए क्यों अहम है कैराना उपचुनाव?
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2019 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी के लिए क्यों अहम है कैराना उपचुनाव?

स्थानीय लोगों के मुताबिक, इस उपचुनाव में कानून एवं व्यवस्था और गन्ना किसानों की परेशानी मुख्य मुद्दे हैं. 

विपक्ष की साझा उम्मीदवार तबस्सुम हसन और  बीजेपी की मृगांका सिंह के बीच मुकाबला है...

कैराना: उत्तर प्रदेश के लिए कैराना लोकसभा सीट राजनीतिक तौर पर अहम है क्योंकि यह माना जा रहा है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में यह रणनीतिक भूमिका निभाएगी. इस लोकसभा सीट पर कल उपचुनाव होना है. इस सीट पर विपक्ष की साझा उम्मीदवार तबस्सुम हसन सत्तारूढ़ बीजेपी की मृगांका सिंह को चुनौती दे रही हैं. राजधानी लखनऊ से करीब 630 किलोमीटर दूर स्थित कैराना लोकसभा सीट के तहत शामली जिले की थानाभवन, कैराना और शामली विधानसभा सीटों के अलावा सहारनपुर जिले की गंगोह और नकुड़ विधानसभा सीटें आती हैं.

  1. बीजेपी सांसद हुकुम सिंह के निधन के बाद हो रहा उपचुनाव
  2. बीजेपी ने उनकी बेटी मृगांका सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया है
  3. वह आरएलडी की प्रत्याशी तबस्सुम हसन के खिलाफ मैदान में हैं
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क्षेत्र में करीब 17 लाख मतदाता हैं जिनमें मुस्लिम, जाट और दलितों की संख्या अहम है. आरएलडी के कार्यकर्ता अब्दुल हकीम खान ने कहा कि उन्होंने कभी ऐसा चुनाव नहीं देखा है जिसमें सत्तारूढ़ दल के उम्मीदवार को विपक्ष का साझा प्रत्याशी टक्कर दे रहा हो. उन्होंने कहा, "यह हमारे लोकतंत्र की खूबसूरती है." 

बीजेपी सांसद हुकुम सिंह के निधन के बाद कैराना लोकसभा सीट पर उपचुनाव हो रहा है. बीजेपी ने उनकी बेटी मृगांका सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया है. वह राष्ट्रीय लोक दल की प्रत्याशी तबस्सुम हसन के खिलाफ मैदान में हैं. तबस्सुम को कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का समर्थन है. विपक्ष उम्मीद कर रहा है कि बीजेपी विरोधी वोटों को लामबंदकर वह गोरखपुर और फूलपुर उपचुनाव की कामयाबी को दोहराएगा जहां सत्तारूढ़ पार्टी को अप्रत्याशित हार का सामना करना पड़ा था. लोकदल के उम्मीदवार कंवर हसन के नाम वापस ले ने और आरएलडी में शामिल होने से विपक्ष का आत्मविश्वास बढ़ा है. 

ये भी पढ़ें: कैराना उपचुनाव: RLD ही नहीं बीजेपी भी मांग रही चौधरी साहब के नाम पर वोट

वहीं दूसरी ओर बीजेपी सीट पर कब्जा बनाए रखने के लिए मतदाताओं, पार्टी कार्यकर्ताओं और विपक्ष को कड़ा संदेश दे रही है कि गोरखपुर और फूलपुर उपचुनाव एक भ्रम था और वह अब भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मजबूत है. बीजेपी की योगी आदित्यनाथ सरकार ने चुनाव प्रचार में कोई कसर नहीं छोड़ी है. योगी के साथ ही उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने भी सहारनपुर और शामली में प्रचार किया. इनके अलावा बीजेपी ने कम से कम पांच मंत्रियों को चुनावी रण में प्रचार के लिए उतारा. इनमें आयुष राज्य मंत्री धर्म सिंह सैनी, गन्ना विकास मंत्री सुरेश राणा, बेसिक शिक्षा मंत्री अनुपमा जायसवाल, कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही और धार्मिक मामले, संस्कृति, अल्पसंख्यक कल्याण, वक्फ और हज मंत्री लक्ष्मी नारायण शामिल हैं. सैनी और राणा क्रमश: नकुड़ और थानाभवन से विधायक है. 

बीजेपी सांसद संजीव बाल्यान, राघव लखन पाल, विजय पाल सिंह तोमर और कांता करदम ने भी मृगांका सिंह के लिए प्रचार किया. सपा और कांग्रेस ने उपचुनाव में मंत्रियों की जमात को उतारने को बीजेपी की घबराहट बताया है. स्थानीय लोगों के मुताबिक , इस उपचुनाव में कानून एवं व्यवस्था और गन्ना किसानों की परेशानी मुख्य मुद्दे हैं. 

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चीनी मिलों द्वारा किसानों का बकाया शीघ्रता से देने के सरकारी दावे को खारिज करते हुए तबस्सुम ने कहा, "क्षेत्र के गन्ना किसान सबसे ज्यादा दुखी हैं, क्योंकि राज्य सरकार ने उनका भुगतान नहीं किया है." 2016 में कैराना से हिन्दू परिवारों का पलायन होने के हुकुम के इस दावे पर, आरएलडी की प्रत्याशी तबस्सुम ने कहा, "कैराना में ऐसा कुछ नहीं हुआ था." उन्होंने कहा, "इलाका हरियाणा के पानीपत से सटा हुआ है, जहां उद्योग हैं और यहां से मजदूर (हिन्दू और मुस्लिम) सुबह वहां जाते हैं और शाम को लौटते हैं." 

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तबस्सुम ने कहा कि कैराना में हिन्दू और मुस्लिम अमन से रहते हैं. वहीं मृगांका ने कहा कि कैराना से हिन्दू परिवारों का पलायन अब रुक गया है , लेकिन 2017 में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले सैकड़ों हिंदू परिवार डर और परेशानी की वजह से कैराना से चले गए थे. कैराना के अलावा, नूरपुर विधानसभा के लिए भी कल ही उपचुनाव है. 

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