Lucknow news: अकबरनगर में नहीं होगा कोई भी बेघर मिलेगा नया घर, LDA द्वारा बस्ती खाली कराने पर सुप्रीम फैसला
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Lucknow news: अकबरनगर में नहीं होगा कोई भी बेघर मिलेगा नया घर, LDA द्वारा बस्ती खाली कराने पर सुप्रीम फैसला

Lucknow news: लखलऊ के अकबरनगर इलाके में कुकरैल नदी के बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में बनी बस्ती को खाली का आदेश पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया है. खबर में आगे जानिए सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा

Lucknow news: अकबरनगर में नहीं होगा कोई भी बेघर मिलेगा नया घर, LDA द्वारा बस्ती खाली कराने पर सुप्रीम फैसला

Lucknow news: राजधानी लखनऊ के अकबरनगर के सभी मकानों को ध्वस्त करने की कार्रवाई जारी रहेगी.  सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को इस मामले पर हस्तक्षेप करने से मना कर दिया है. अकबरनगर क्षेत्र में अनधिकृत निर्माणों के खिलाफ लखनऊ विकास प्राधिकरण (एलडीए) द्वारा की जा रही तोड़फोड़ की कार्रवाई किसी भी तरह की रोकटोक करने से मना करने के साथ यह भी निश्चित कर दिया है कि किसी भी झुग्गीवासी को वैकल्पिक आवास दिए बिना बेदखल नहीं किया जाना चाहिए. 

दरअसल एलडीए ने कुकरैल नदी के बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में बनी बस्ती को खाली का आदेश दिया था. इस पर वहां रह रहे लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. इस याचिका पर न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने कहा कि हम इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस आदेश और टिप्पणियों में किसी तरह का हस्तक्षेप नहीं कर रहे हैं, जिसमें अकबरनगर में विध्वंस और बेदखली की कार्रवाई को सही ठहराया गया था. 

हम मामले में उच्च न्यायालय द्वारा पारित फैसले में दर्ज निष्कर्षों से सहमत हैं कि प्रभावित कॉलोनी का निर्माण बाढ़ क्षेत्र में किया गया है. तथ्यों से जाहिर है कि याचिकाकर्ताओं के पास उस जगह के मालिकाना हक को लेकर कोई दस्तावेज नहीं है. इससे पहले उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने पीठ को बताया कि इस कॉलोनी में रहने वाले लोगों के पुनर्वास और वैकल्पिक आवास के मुहैया कराने के लिए 1818 आवेदन मिले हैं. इनमें 1032 को जांच के बाद वैकल्पिक आवास के लिए योग्य पाया है. 706 आवेदनों की अभी भी जांच की जा रही है. 

पीठ ने कहा कि यदि वे ऐसा करने में विफल रहते हैं, तो लखनऊ विकास प्राधिकरण कानून अनुसार कार्रवाई का हकदार होगा.  शीर्ष अदालत ने कहा कि पुनर्वास के लिए वैकल्पिक आवास मुहैया कराने के लिए निवासियों द्वारा भुगतान की जाने वाली रकम का सवाल है तो इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्देशों के अनुसार, 15 वर्षों की अवधि में 4.79 लाख का भुगतान होगना है. 

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