यूपी में पूर्व मुख्यमंत्रियों को अब नहीं मिलेगा सरकारी बंगला, सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला
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यूपी में पूर्व मुख्यमंत्रियों को अब नहीं मिलेगा सरकारी बंगला, सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद अब अखिलेश यादव, मायावती, राजनाथ सिंह, कल्याण सिंह को प्रदेश में मिला सरकारी बंगला खाली करना होगा.

पूर्व मुख्यमंत्रियों के आवास पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला.

नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्रियों को अब सरकारी बंगला नहीं मिलेगा. सुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सोमवार (7 मई) को यह फैसला सुनाया. पूर्ववर्ती समाजवादी पार्टी की सरकार में तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने एक कानून बनाया था, जिसके मुताबिक उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्रियों को रहने के लिए सरकारी बंगला दिए जाए का प्रावधान किया गया था. इसी कानून को एक जनहित याचिका के जरिए चुनौती दी गई थी, जिसपर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अखिलेश सरकार के कानून को पलट दिया. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद अब अखिलेश यादव, मायावती, राजनाथ सिंह, कल्याण सिंह को प्रदेश में मिला सरकारी बंगला खाली करना होगा.

  1. सुप्रीम कोर्ट ने जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया फैसला.
  2. अखिलेश सरकार ने बनाया था कानून.
  3. अखिलेश यादव, मायावती को अब खाली करना होगा सरकारी बंगला.

उच्चतम न्यायालय ने मुख्यमंत्रियों को पद से हटने के बाद सरकारी आवास अपने पास रखने का प्रावधान करने संबंधी उत्तर प्रदेश के कानून में किया गया संशोधन सोमवार (7 मई) को निरस्त कर दिया. न्यायालय ने कहा कि इस प्रावधान से समता की अवधारणा का उल्लंघन होता है. न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि कानून में किये गये संशोधन को संविधान का उल्लंघन करार दिया क्योंकि यह संविधान में प्रदत्त समता के सिद्धांत का अतिक्रमण करता है. पीठ ने कानून में किये गये संशोधन को मनमाना, पक्षपातपूर्ण और समता के सिद्धांत का उल्लंघन करने वाला करार दिया.

शीर्ष अदालत ने गैर सरकारी संगठन ‘लोक प्रहरी’ की जनहित याचिका पर यह फैसला सुनाया. न्यायालय ने इस याचिका पर नौ अप्रैल को सुनवाई पूरी की थी. इस संगठन ने उत्तर प्रदेश की तत्कालीन अखिलेश यादव सरकार द्वारा उप्र मंत्रिगण ( वेतन , भत्ते और विविध प्रावधान ) कानून 1981 में किये गये संशोधन को चुनौती दी थी. इस संगठन ने विभिन्न ट्रस्टों, पत्रकारों, राजनीतिक दलों, विधान सभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष, न्यायिक अधिकारियों और सरकारी अधिकारियों के आवासों के आबंटन को नियमित करने संबंधी 2016 के ही संपदा विभाग के नियंत्रण में आवासों के आबंटन विधेयक -2016 को भी चुनौती दी थी.

शीर्ष अदालत ने कहा कि एक बार सार्वजनिक पद से हटने वाले व्यक्तियों और आम आदमी में कोई अंतर नहीं है. न्यायालय ने इससे पहले टिप्पणी की थी कि यदि इस कानून को अवैध घोषित किया जाता है तो दूसरे राज्यों के ऐसी ही कानूनों को भी चुनौती दी जा सकती है. न्यायालय ने इससे पहले कहा था कि उसने केन्द्र और सभी राज्य सरकारों को इस विषय पर अपनी राय रखने का अवसर दिया था क्योंकि उसके फैसले का असर दूसरे राज्यों और केन्द्र सरकार द्वारा बनाये गये ऐसे ही नियमों पर भी पड़ सकता है.

इससे पहले, न्याय मित्र की भूमिक निभा रहे वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल सुब्रमणियम ने न्यायालय को सुझाव दिया था कि सांविधानिक पद पर आसीन व्यक्ति पद से हटने के बाद एक सामान्य नागरिक जैसा ही होता है और वे सरकारी आवास के हकदार नहीं है. शीर्ष अदालत में जब यह दावा किया गया कि उप्र सरकार उसके एक अगस्त, 2016 के फैसले को निष्प्रभावी बनाने के लिये कानून में संशोधन कर रही है उसने नवंबर, 2016 में उप्र सरकार से जवाब मांगा था.

न्यायालय ने अगस्त, 2016 के फैसले में कहा था कि उत्तर प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्रियों को सरकारी बंगले आबंटित करने की परंपरा कानून की दृष्टि से गलत है और उन्हें दो महीने के भीतर इन बंगलों को खाली कर देना चाहिए. न्यायालय ने यह भी कहा था कि राज्य सरकार को इन बंगलों में अनधिकृत कब्जा करके रहने वालों से इस अवधि के लिये उचित किराया वसूल करना चाहिए.

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