Mahashivratri 2023: भोलेनाथ क्यों कहलाते हैं नीलकंठ, माथे पर चंद्रमा, हाथों में त्रिशूल और तीसरी आंख का क्या है संदेश
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Mahashivratri 2023: भोलेनाथ क्यों कहलाते हैं नीलकंठ, माथे पर चंद्रमा, हाथों में त्रिशूल और तीसरी आंख का क्या है संदेश

Mahashivratri 2023 Lord Shiva: शनिवार यानी 18 फरवरी को महाशिवरात्रि का महापर्व मनाया जाएगा. इस महापर्व के खास मौके पर हम आपको भगवान शिव की वेशभूषा से जुड़ी कुछ खास बातें बताएंगे.  

 

Maha shivratri 2023 date shubh muhurat

Mahashivratri 2023: 18 फरवरी, शनिवार को महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाएगा. हिंदू पंचांग के अनुसार, यह पर्व हर साल फाल्गुन माह कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है. मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था. इस दिन भोलेनाथ की विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है. आपने भगवान शंकर की मूर्ति या तस्वीर जरूर देखी होगी. भोलेनाथ की जटाएं हैं, जिनमें एक चन्द्रमा विराजमान होता है. उनके मस्तक पर तीसरी आंख है. गले में सर्प लपेटा हुआ रहता है. इसके साथ ही भोलेनाथ रुद्राक्ष धारण करते हैं. उनके हाथों में डमरू और त्रिशूल होता है. पूरी शरीर पर भस्म लगाए रहते हैं. ऐसे में आज हम भगवान शिव की वेशभूषा की खास बात बताएंगे. उनके मस्तक पर तीसरी आंख, जटाओं में चंद्रमा, हाथों में त्रिशूल के पीछे का संदेश बताएंगे. साथ ही यह भी बताएंगे कि भोलेनाथ को नीलकंठ क्यों कहा जाता है....

भगवान शिव को क्यों कहते हैं नीलकंठ? 
दरअसल, समुद्र मंथन के दौरान सबसे पहले विष निकला था. जिसकी वजह से सृष्टि के सभी जीवों का जीवन संकट में आ गया था. तब भोलेनाथ ने उस विष को पी लिया था, लेकिन उन्होंने विष को गले से नीचे नहीं जाने दिया. गले में विष धारण करने की वजह से शिवजी का कंठ नीला हो गया. जिसके वजह से उन्हें नीलकंठ कहा जाने लगा. 

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क्यों धारण किया है चंद्र?
चंद्रमा को शीतलता का प्रतीक माना जाता है. ऐसे में जीवन में कितनी भी परेशानियां आएं, हमें दिमाग को शांत ही रखना चाहिए. ज्योतिष में चंद्र को मन का कारक कहा गया है. शिवजी चंद्र को माथे पर धारण करके यह संदेश देते हैं कि मन को दिमाग से नियंत्रित करना चाहिए. मन को दिमाग से नियंत्रित करेंगे तो यह इधर-उधर नहीं भटकेगा.

तीसरी आंख क्या देती है संदेश? 
भगवान शिव की तीसरी आंख विवेक का प्रतीक है. कभी-कभी हमारी दोनों आंखें सही-गलत देख नहीं पाती हैं. ऐसी स्थिति में तीसरी आंख यानी हमें हमारे विवेक से सही-गलत को देखना और समझना चाहिए. 

त्रिशूल क्या देता है संदेश? 
भोलेनाथ हमेशा अपने साथ त्रिशूल रखते हैं. त्रिशूल के तीन नुकीले सिरे तीनों कालों- भूत, भविष्य और वर्तमान के प्रतीक हैं. तीनों कालों पर शिव जी का नियंत्रण है. त्रिशूल तीन गुणों का भी प्रतीक है- सत्, रज और तम. शिवजी का इन तीनों गुणों पर भी नियंत्रण है. ऐसे में हमें भी इन तीनों गुणों पर काबू रखना चाहिए.

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महाशिवरात्रि से जुड़ी मान्यताएं (Mahashivratri 2023 Significance)
महाशिवरात्रि से जुड़ी दो मान्यताएं काफी प्रचलित है. पहली मान्यता है कि फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी की रात में शिव जी अग्नि स्तंभ के रूप में ब्रह्मा जी और विष्णु जी के सामने प्रकट हुए थे. दूसरी मान्यता के अनुसार, इस तिथि पर भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था. शिव-पार्वती जी के विवाह के संबंध में शिवपुराण में लिखा है कि शिव-पार्वती विवाह मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि सोमवार को हुआ था. उस समय चंद्र, बुध लग्र में थे और रोहिणी नक्षत्र था. शिव जी और माता सती का विवाह चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि रविवार को पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में हुआ था. 

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