Sawan 2022: इसी श्रावण मास में विवाह के बाद भगवान शिव पहली बार ससुराल गए थे.... ससुराल में उनका जोरदार स्वागत किया गया....शिव पुराण के मुताबिक, भगवान शिव और माता पार्वती सावन के महीने में पृथ्वी पर निवास करते हैं....इस वजह से भक्त उनकी पूजा करते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं..इस माह में ही शिव और पार्वती का मिलन हुआ था. इसलिए सावन शिव जी को प्रिय है.
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Sawan 2022: आज से सावन का पवित्र महीना शुरू हो गया है. धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि ये महीना भोले बाबा को बहुत पसंद है. भगवान शिव को जलाभिषेक किया जाता है. वैसे आप किसी भी दिन बाबा भोलेनाथ का जलाभिषेक कर सकते हैं. इस माह शिवालयों में भक्तों की भीड़ जुटी रहती है. आपने कभी सोचा है कि भगवान शिव का ही जलाभिषेक क्यों किया जाता है, किसी औऱ भगवान का क्यों नहीं. धार्मिक शास्त्रों में भी शिव के जलाभिषेक के बारे में बताया गया है.श्रावण मास में जलाभिषेक का बहुत महत्व होता है. इस रिपोर्ट में हम आपको बताएंगे इसके बारे में...
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शिव जी को प्रिय है सावन का महीना
धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि मां पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तप किया था. इस श्रावण मास में भगवान शिव उनकी तपस्या से प्रसन्न हुए थे और उनकी मनोकामना पूरी की थी. इस माह में ही शिव और पार्वती का मिलन हुआ था. इसलिए सावन शिव जी को प्रिय है.
शिव का ससुराल में हुआ था जोरदार स्वागत
इसी श्रावण मास में विवाह के बाद भगवान शिव पहली बार ससुराल गए थे. ससुराल में उनका जोरदार स्वागत किया गया. उनका जलाभिषेक हुआ, जिससे वे बहुत खुश हुए. शिव पुराण के मुताबिक, भगवान शिव और माता पार्वती सावन के महीने में पृथ्वी पर निवास करते हैं. इस वजह से भक्त उनकी पूजा करते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं.
सावन में शिव जी के जलाभिषेक की पौराणिक कथा
शिवपुराण की कथा के अनुसार, सावन के महीने में ही समुद्र मंथन हुआ था. इस मंथन से सबसे पहले हलाहल विष निकला. उस विष के कारण चारों तरफ हाहाकार मच गया. अब समस्या यह थी कि उस विष का क्या होगा? इस संकट का क्या हल है? तब देवों के देव महादेव ने इस संकट से पूरी सृष्टि को बचाने का निर्णय लिया. संसार की रक्षा करने के लिए भगवान शिव ने विष को कंठ में धारण कर लिया. विष की वजह से कंठ नीला पड़ गया और वे नीलकंठ कहलाए. विष का प्रभाव कम करने के लिए सभी देवी-देवताओं ने भगवान शिव को जल अर्पित किया, जिससे उन्हें राहत मिली.यह घटना सावन माह में हुई थी. इस वजह से हर साल सावन माह में भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक किया जाता है, ताकि वे प्रसन्न हों और उनकी कृपा प्राप्त हो. इससे वे प्रसन्न हुए. तभी से हर साल सावन मास में भगवान शिव को जल अर्पित करने या उनका जलाभिषेक करनी की परंपरा शुरू हो गई.
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वैज्ञानिक कारण
वैज्ञानिक शोधों में पाया गया है कि सभी ज्योत्रिलिंगो पर सबसे ज्यादा रेडिएशन पाया जाता है. शिवलिंग एक न्यूक्लिअर रिएक्टर्स की तरह रेडियो एक्टिव एनर्जी से भरा होता हैं. इसलिए इस प्रलंयकारी ऊर्जा को शांत रखने के लिए ही शिवलिंगों पर लगातार जल चढ़ाया जाता है. वहीं शिवलिंग पर चढ़ाया हुआ जल, नदी के बहते हुए जल के साथ मिलकर औषधि का रूप ले लेता है.
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