परीक्षा में नकल करने वाले छात्रों के साथ नहीं होनी चाहिए कोई नरमी, हाईकोर्ट की हिदायत

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि परीक्षा में नकल करने वाले छात्रों को बख्शा नहीं जाना चाहिए. उनके साथ कोई नरमी नहीं दिखानी चाहिए, बल्कि उन्हें सबक सिखाया जाना चाहिए.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Dec 26, 2022, 09:33 PM IST
  • परीक्षा में नकल करने वाले छात्रों पर कोर्ट की टिप्पणी
  • हाईकोर्ट ने कहा- ऐसे छात्रों को बख्शा नहीं जाना चाहिए
परीक्षा में नकल करने वाले छात्रों के साथ नहीं होनी चाहिए कोई नरमी, हाईकोर्ट की हिदायत

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि परीक्षा में नकल जैसा कदाचार करने वाले छात्रों के साथ कोई नरमी नहीं दिखानी चाहिए, बल्कि उन्हें सबक सिखाया जाना चाहिए और उनके साथ सख्ती से पेश आना चाहिए.

नकल करने वाले छात्रों को सिखाना चाहिए सबक
हाइकोर्ट ने कहा कि 'छात्र, जो अनुचित साधनों का सहारा लेते हैं और इससे दूर हो जाते हैं, इस राष्ट्र का निर्माण नहीं कर सकते. उनके साथ नरमी से पेश नहीं किया जा सकता है और उन्हें अपने जीवन में अनुचित साधनों को नहीं अपनाने का सबक सीखने के लिए बनाया जाना चाहिए'.

मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कहा कि उन्होंने यह भी देखा कि विश्वविद्यालय धोखेबाजों को निष्कासित करने के बजाय चतुर्थ श्रेणी की सजा देने में उदार रहा है.

योगेश परिहार की याचिका पर कोर्ट ने की सुनवाई
खंडपीठ ने इंजीनियरिंग के छात्र योगेश परिहार की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की, जिसने दिल्ली तकनीकी विश्वविद्यालय (डीटीयू) के दूसरे सेमेस्टर की परीक्षा रद्द करने के आदेश को चुनौती दी थी. इससे पहले हाईकोर्ट के सिंगल जज ने डीटीयू के आदेश में दखल देने से इनकार कर दिया था.

परिहार को चतुर्थ श्रेणी के तहत दंडित किया गया था और डीटीयू के कुलपति (वीसी) ने परीक्षा में लिखने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था. तीसरे सेमेस्टर के लिए उनका पंजीकरण भी रद्द कर दिया गया था और उन्हें दूसरे सेमेस्टर के लिए फिर से अपना पंजीकरण कराने को कहा गया था.

छात्र के पास फोन मिला, जांच में पाई गई ये सारी बातें
डीटीयू ने अदालत को बताया कि एक अन्य छात्र के पास मोबाइल फोन मिला है. आगे की जांच के बाद यह पाया गया कि परिहार सहित 22 छात्रों का एक व्हाट्सएप ग्रुप है, जिसे 'एन्स' कहा जाता है. उनके बीच प्रश्नपत्र और जवाब प्रसारित किए जा रहे थे. अदालत ने कहा कि वीसी के फैसले में उनकी दलीलों और प्रस्तुत दस्तावेजों के अनुसार किसी हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है.

खंडपीठ ने कहा, 'यह अदालत भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपने अधिकार का प्रयोग करते हुए और निर्णय लेने की प्रक्रिया को देखने के बाद पाया कि नीचे के अधिकारियों द्वारा दिया गया तर्क इतना मनमाना है कि कोई भी विवेकशील व्यक्ति इस तरह के निष्कर्ष पर नहीं पहुंचेगा.'

खंडपीठ ने कहा कि कॉलेज के अधिकारियों के फैसले और विद्वान एकल न्यायाधीश के आदेश में इस अदालत से किसी भी तरह के हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है. अदालत ने कहा कि इन छात्रों के लिए इस तरह की प्रथाओं में लिप्त होना काफी अनुचित है, क्योंकि इससे उन्हें उन छात्रों के खिलाफ अनुचित लाभ मिलता है, जिन्होंने अपनी परीक्षा देने के लिए कड़ी मेहनत की होगी.
(इनपुट: आईएएनएस)

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