लौह युग में जंगलों में रहते थे मुर्गे और होती थी पूजा, जानें कब इंसान इन्हें खाने लगा

अध्ययन में पाया गया सबसे पहले घरेलू मुर्गी की हड्डियाँ लगभग 3,500 साल पहले थाईलैंड से आई थीं. ब्रिटेन में तीसरी शताब्दी ईस्वी तक पक्षियों का नियमित रूप से सेवन नहीं किया जाता था. 

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Jun 7, 2022, 02:32 PM IST
  • लाल जंगली मुर्गी सूखे चावल की खेती के प्रति आकर्षित थी
  • माना जाता था कि यह जीव मानव आत्मा को अगले जीवन तक ले जाते थे
लौह युग में जंगलों में रहते थे मुर्गे और होती थी पूजा, जानें कब इंसान इन्हें खाने लगा

लंदन: लौह युग ब्रिटेन में खाने के बजाय मुर्गियों की पूजा की जाती थी. पक्षियों को अक्सर लोगों के साथ औपचारिक रूप से दफनाया जाता था और तीसरी शताब्दी ईस्वी तक नियमित रूप से इनका उपभोग नहीं किया जाता था. नए शोध में यह खुलासा हुआ है. शोधकर्ताओं ने यूके समेत 89 देशों के चिकन हड्डियों का विश्लेषण किया है. 

अध्ययन में पाया गया सबसे पहले घरेलू मुर्गी की हड्डियाँ लगभग 3,500 साल पहले थाईलैंड से आई थीं. उनका दावा है कि दक्षिण पूर्व एशिया में 1,500 ईसा पूर्व तक चिकन पालतू बनाना चल रहा था, लेकिन ब्रिटेन में तीसरी शताब्दी ईस्वी तक पक्षियों का नियमित रूप से सेवन नहीं किया जाता था. 

शोधकर्ताओं के मुताबिक आज दुनिया में सबसे ज्यादा सेवन किए जाने वाले मांस में मुर्गा शामिल है. लेकिन नए शोध से पता चलता है कि सर्वव्यापी पक्षियों को मूल रूप से पूजा की जाती थी और साथी के रूप में सम्मानित किया जाता था.

धान की खेती के बाद शुरू हुआ पालना
शोधकर्ताओं के मुताबिक सूखे धान की खेती शुरू होने के बाद मुर्गे को पालतू जानवरों के रूप में पाला जाना लगे. जिसने लगभग 1500 ईसा पूर्व में पेड़ों से नीचे जंगली जंगली मुर्गी, आधुनिक मुर्गे के पूर्वज को आकर्षित किया.

शोधकर्ताओं का कहना है कि मुर्गी पालन के पीछे की प्रेरणा दक्षिण-पूर्व एशिया में सूखे चावल की खेती का आगमन था जहां लाल जंगली पक्षी रहते थे. सूखे चावल की खेती ने एक चुंबक के रूप में काम किया, जो पेड़ों से जंगली जंगल के पक्षियों को खींच रहा था, जिससे लोगों और जंगल के पक्षियों के बीच घनिष्ठ संबंध शुरू हो गए.

मान्यता: मानव आत्मा को अगले जीवन तक ले जाते थे
इससे पहले, मुर्गियों को 'एक्सोटिका' माना जाता था, जो असामान्य या उष्णकटिबंधीय क्योंकि वे दूसरे देश से आए थे. प्राचीन मनुष्यों को भी मुर्गियों के साथ दफनाया गया था, यह मानते हुए कि पक्षी 'साइकोपोम्प्स' थे - जीव मानव आत्मा को अगले जीवन तक ले जाते थे.

क्या कहते हैं शोधकर्ता
एक्सेटर विश्वविद्यालय में अध्ययन लेखक प्रोफेसर नाओमी साइक्स ने कहा, 'मुर्गियां खाना इतना आम है कि लोग सोचते हैं कि हमने उन्हें हमेशा खाया है. 'हमारे साक्ष्य से पता चलता है कि मुर्गियों के साथ हमारे पिछले संबंध कहीं अधिक जटिल थे, और सदियों से मुर्गियों की पूजा की जाती थी.'

कैसे हुआ शोध
एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने इंग्लैंड, इटली, तुर्की, मोरक्को और थाईलैंड सहित 89 देशों में 600 से अधिक साइटों में पाए गए ऐतिहासिक चिकन अवशेषों का विश्लेषण किया है. इसमें एक्सेटर, कार्डिफ़, ऑक्सफोर्ड, बोर्नमाउथ, म्यूनिख और टूलूज़ विश्वविद्यालयों के विशेषज्ञ शामिल हैं. उनका शोध आज दो अध्ययनों में प्रकाशित हुआ है, जर्नल एंटिकिटी एंड प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज यूएसए में.

पिछले शोध ने दावा किया है कि चीन, दक्षिण पूर्व एशिया या भारत में 10,000 साल पहले तक मुर्गियों को पालतू बनाया गया था, और मुर्गियां 7,000 साल पहले यूरोप में मौजूद थीं, लेकिन नए शोध से संकेत मिलता है कि पालतू बनाना बहुत पहले शुरू हो गया था. 

सूखे चावल का कमाल
ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में अध्ययन लेखक प्रोफेसर ग्रेगर लार्सन ने मेलऑनलाइन को बताया, 'चावल की खेती के दो मुख्य प्रकार हैं - गीले चावल और सूखे चावल.

गीला चावल आमतौर पर जलभराव वाले धान में उगाया जाता है; सूखा चावल चावल का एक अलग प्रकार है जिसमें पानी जमा होने की आवश्यकता नहीं होती है और जिस तरह से लोग इस किस्म को उगाते और काटते हैं.

'गीला चावल दक्षिण पूर्व एशिया में कुछ समय के लिए उगाया जाता था, लेकिन सूखे चावल उगाने वाले लोगों के आने पर ही हमें मुर्गियों का पहला प्रमाण दिखाई देता है. इससे पता चलता है कि लाल जंगली मुर्गी सूखे चावल की खेती के प्रति आकर्षित थी और इसी से उस रिश्ते की शुरुआत हुई जिससे मुर्गियां पैदा हुईं.'

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