Hasrat Mohani Poetry: 'वफ़ा तुझ से ऐ बेवफ़ा चाहता हूं', हसरत मोहानी के चुनिंदा शेर
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Hasrat Mohani Poetry: 'वफ़ा तुझ से ऐ बेवफ़ा चाहता हूं', हसरत मोहानी के चुनिंदा शेर

Hasrat Mohani Poetry: हसरत मोहानी उर्दू के बड़े शायरों में शुमार किए जाते हैं. आज हम पेश कर रहे हैं उनके कुछ चुनिंदा शेर. पढ़ें...

 

Hasrat Mohani Poetry: 'वफ़ा तुझ से ऐ बेवफ़ा चाहता हूं', हसरत मोहानी के चुनिंदा शेर

Hasrat Mohani Poetry: हसरत मोहानी उर्दू के बेहतरीन शायर थे. उनका नाम सय्यद फ़ज़ल-उल-हसन था. वह सियासतदां, सूफ़ी, दरवेश और योद्धा थे. उन्होंने पत्रकार, आलोचक, और शोधकर्ता के तौर पर भी काम किया है. हसरत मोहानी लखनऊ पास उन्नाव में 1881 में पैदा हुए. उन्होंने 13 मई 1951 को लखनऊ में वफात पाई.

आरज़ू तेरी बरक़रार रहे 
दिल का क्या है रहा रहा न रहा 

वफ़ा तुझ से ऐ बेवफ़ा चाहता हूँ 
मिरी सादगी देख क्या चाहता हूँ 

आँख उस की जो फ़ित्ना-बार उठी 
हर नज़र अल-अमाँ पुकार उठी 

हम क्या करें अगर न तिरी आरज़ू करें 
दुनिया में और भी कोई तेरे सिवा है क्या 

बरसात के आते ही तौबा न रही बाक़ी 
बादल जो नज़र आए बदली मेरी नीयत भी 

देखने आए थे वो अपनी मोहब्बत का असर 
कहने को ये है कि आए हैं अयादत कर के 

दोपहर की धूप में मेरे बुलाने के लिए 
वो तिरा कोठे पे नंगे पाँव आना याद है 

आप को आता रहा मेरे सताने का ख़याल 
सुल्ह से अच्छी रही मुझ को लड़ाई आप की 

देखा किए वो मस्त निगाहों से बार बार 
जब तक शराब आई कई दौर हो गए 

शाम हो या कि सहर याद उन्हीं की रखनी 
दिन हो या रात हमें ज़िक्र उन्हीं का करना 

वस्ल की बनती हैं इन बातों से तदबीरें कहीं 
आरज़ूओं से फिरा करती हैं तक़दीरें कहीं 

ख़ू समझ में नहीं आती तिरे दीवानों की 
दामनों की न ख़बर है न गिरेबानों की 

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