अब नहीं बढ़ेंगे टमाटर के दाम, भारतीय वैज्ञानिकों ने खोज निकाली तकनीक
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अब नहीं बढ़ेंगे टमाटर के दाम, भारतीय वैज्ञानिकों ने खोज निकाली तकनीक

Tomato New Research: CSIR की लखनऊ प्रयोगशाला में किए नये शोध से टमाटर की कीमतों को कंट्रोल करने में मदद मिल सकती है. यह शोध टमाटर की 'अर्कविकास' और 'एल्साक्रीट' किस्मों पर किया गया है, जिसमें 12 साल का वक्त लगा है.

अब नहीं बढ़ेंगे टमाटर के दाम, भारतीय वैज्ञानिकों ने खोज निकाली तकनीक

Tomato New Research: CSIR की लखनऊ प्रयोगशाला में 'राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान'(NBRI) के नये शोध से भविष्य में टमाटर की कीमतों को कंट्रोल करने में मदद मिल सकती है. CSIR के मुख्य वैज्ञानिक अनिरुद्ध साने की शोध में संस्थान ने ट्रांसजेनिक बदलाव की मदद से टमाटर के पकने और खराब होने के वक्त को बढ़ाने में सफलता हासिल की है. इस शोध से टमाटर के भंडारण और परिवहन के लिए ज्यादा समय मिलेगा. 

वैज्ञानिक साने ने कहा, "अनुसंधान से टमाटर की कीमत वृद्धि को कंट्रोल करने में मददगार हो सकता है. क्योंकि टमाटर को खेत से तोड़ने के बाद बाजार तक पहुंचाने के लिए ज्यादा वक्त मिल रहा है. यदि टमाटर देर से पकती है तो इसे लंबे वक्त तक रखा जा सकता है. परिवहन दूर-दराज तक किया जा सकेगा और भंडारण के लिए गोदामों की जरूरत भी नहीं होगी. 

NBRI के निदेशक अजीत कुमार शासनी ने कहा, “देश भर में टमाटर की विभिन्न प्रजातियां उगाई जाती हैं. उत्पादन के बाद उन्हें एक जगह से दूसरे जगह तक ले जाने में एक से तीन दिन का वक्त लगता है. इस दौरान उन्हें ठंडा रखना पड़ता है, नहीं तो ये जल्दी पकने लगते हैं. ऐसे में बड़ी मात्रा में टमाटर बाजार पहुंचने से पहले ही खराब हो जाते हैं. इसे रोकने के लिए यह शोध किया गया है”.

उन्‍होंने कहा, “हमने टमाटर में मौजूद एब्सिसिक एसिड की मात्रा को कम करने की कोशिश की है. टमाटर के जीन में बदलाव कर एंजाइम की मात्रा कम कर दी गई. इस प्रक्रिया को ट्रांसजेनिक परिवर्तन कहा जाता है. टमाटर में एब्सिसिक एसिड की मौजूदगी के कारण उसमें एथिलीन बनना शुरू हो जाता है जो उन्हें पकाता है. इसलिए, एब्सिसिक एसिड की गति धीमी होने से एथिलीन बनने में देरी होती है. इससे पकने की गति को पांच दिन से बढ़ाकर 10-15 दिन करने में मदद मिलेगी. इससे भंडारण और परिवहन का समय बढ़ेगा और बर्बादी भी कम होगी".

12 साल में मिली कामयाबी 
साने ने बताया कि यह शोध टमाटर की 'अर्कविकास' और 'एल्साक्रीट' किस्मों पर किया गया है, जिसमें 12 साल का वक्त लगा है.  

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