मृत्युभोज या तेरहवीं एक आदर्श हिन्दू परंपरागत प्रथा है, जिसमें व्यक्ति की मौत के बाद 13वें दिन एक विशेष समारोह का आयोजन किया जाता है.
PUSHPENDER KUMAR
Aug 15, 2023
How Soul Get Peace
इस प्रथा का मुख्य उद्देश्य मृतक की आत्मा को शांति प्रदान करना है. विश्वास है कि मृत्यु के बाद आत्मा आकाश में अस्तित्व में रहती है और तेरहवीं के दिन उसे शांति मिलती है.
Symbol Of Mourning
यह प्रथा शोकाकुल परिजनों के लिए एक प्रतीक होती है, जो व्यक्ति की मौत के बाद उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं और उनके शोक को समर्थन देते हैं.
Purmajanam
यह प्रथा हिन्दू धर्म में मृत्यु और पुनर्जन्म के धार्मिक विश्वास पर आधारित है.
Presence Of Priest
मृत्युभोज में अक्सर कोई पंडित या पुरोहित आमंत्रित किए जाते हैं, जिनका काम मन्त्रों और पूजा के माध्यम से मृतक की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करना होता है.
What is Terahvi
तेरहवीं में एक प्रशास्तांकित समारोह आयोजित किया जाता है, जिसमें शोकाकुल परिवार के सदस्य और आपसी जानकार के लिए आए हुए लोग भाग लेते हैं.
Terahvi Period Mourning
तेरहवीं में शोक की आधिकारिक अवधि 13 दिन तक होती है, जिनमें परिवार और दोस्त शोक और विशेष रूप से भोजन के माध्यम से अपने दुख को व्यक्त करते हैं.
Unity And Support In Society
मृत्युभोज के माध्यम से समाज में एकता और समर्थन की भावना पैदा होती है. क्योंकि इस समय पर परिवार और दोस्त एक-दूसरे के साथ होते हैं और उनके दुख साझा किए जाते हैं.
Terahvi Charity
तेरहवीं में धन्यवादी यात्रियों को भोजन और दान किया जाता है. जिससे समाज में दान और चैरिटी की भावना भी बढ़ती है.
Terahvi Cultural Significance
मृत्युभोज एक सांस्कृतिक महत्वपूर्णता रखने वाली प्रथा है जो हिन्दू समाज में पीढ़ियों से पीढ़ियों तक पास की जाती है और उसके सांस्कृतिक अर्थ को साकारता देती है.