शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या में क्या अंतर है, कुंडली से आप भी कर सकते हैं चेक

K Raj Mishra
Sep 17, 2023

शनि देव को कर्मफल दाता और न्यायाधिपति कहते हैं, यानी वह व्यक्ति को उसके कर्मों के आधार पर शुभ फल और दंड देते हैं.

जिन जातकों पर शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या लग जाती है उनके अच्छे दिनों की समाप्ति और बुरे दिन की शुरुआत हो जाती है.

एक व्यक्ति के जीवन में शनि की साढ़ेसाती हर 30 साल के बाद लगती है. इस दौरान उसे काफी संकटों का सामना करना पड़ता है.

जब शनि गोचर में जन्मकालीन राशि से द्वादश, चन्द्र लग्न व द्वितीय भाव में स्थित होता है तब इसे शनि की 'साढ़ेसाती' कहते हैं.

वहीं शनि जब गोचर में जन्मकालीन राशि से चतुर्थ व अष्टम भाव में स्थित होता है तब इसे शनि का 'ढैय्या' कहते हैं.

शनि की महादशा 19 साल की होती है. इस दौरान व्यक्ति अगर शनिदेव खुश हो जाएं तो व्यक्ति महाराजा बन जाता है.

हिंदू धर्मग्रंथों के मुताबिक, शनि की साढ़ेसाती के प्रभाव के कारण भगवान राम को भी वनवास भोगना पड़ा था.

शनि की साढ़ेसाती के प्रभाव के कारण माता सीता का रावण ने हरण कर लिया था. माता को दुख उठाना पड़ा था.

भगवान राम को तकलीफ देने के कारण हनुमानजी ने शनि को दंड दिया था. इसी कारण हनुमान भक्तों का शनिदेव कुछ अहित नहीं करते हैं.

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