आयुर्वेद के अनुसार शरीर का स्वास्थ्य वात पित्त और कफ तीन चीजों पर सबसे ज्यादा निर्भर करता है.
अगर इन तीनों में से किसी का भी संतुलन बिगड़ा तो रोग होने लगते हैं.
वात दोष
शरीर में ब्लड सर्कुलेशन वात के कारण होता है. शरीर में सभी प्रकार के रोगों का मूल कारण वात ही है.
वात का शरीर में स्थान
वात का शरीर में मुख्य स्थान कोलन या पेट माना जाता है.
वात का प्रभाव
वात प्रकृति वाले लोगों में निर्णय लेने में जल्दबाजी, जल्दी क्रोधित होना व चिढ़ जाना, जल्दी डर जाना, जैसी आदतें पाई जाती हैं.
पित्त दोष
शरीर में बनने वाले एंजाइम और हार्मोन को कंट्रोल करता है. अगर शरीर में पित्त दोष ठीक स्थिति में नहीं है तो इसका मतलब है कि ऐसे लोगों को कब्ज से जुड़ी समस्याएं ज्यादा होती हैं.
पित्त का शरीर में स्थान
शरीर में पित्त का मुख्य स्थान पेट और छोटी आंत है.
पित्त का प्रभाव
गर्मी न बर्दाश्त कर पाना, शरीर का कोमल और स्वच्छ होना, त्वचा पर भूरे धब्बे, बालों का जल्दी सफेद होना आदि पित्त के लक्षण हैं.
कफ दोष
कफ दोष बाकी दोनों दोषों वात और पित्त को सही करता है. हमारी मेंटल और फिजीकल, रोग प्रतिरोधक क्षमता आदि कफ के वजह से प्रभावित होते हैं.
कफ का शरीर में स्थान
हमारे शरीर में कफ का मुख्य स्थान पेट और छाती है.
कफ का प्रभाव
भूख, प्यास और गर्मी कम लगना, पसीना कम आना, जोड़ों में मजबूती और स्थिरता, शरीर में गठीलापन इसके प्रमुख लक्षण हैं.
Disclaimer
यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और विभिन्न जानकारियों पर आधारित है. zee media इसकी पुष्टि नहीं करता है