'बहाना ढूँढते रहते हैं कोई रोने का'...जावेद अख्तर की ये लाइनें पढ़कर मन हो जाएगा खुश

Harsh Katare
Dec 20, 2024

तुम ये कहते हो कि मैं ग़ैर हूँ फिर भी शायद निकल आए कोई पहचान ज़रा देख तो लो

डर हम को भी लगता है रस्ते के सन्नाटे से लेकिन एक सफ़र पर ऐ दिल अब जाना तो होगा

दर्द के फूल भी खिलते हैं बिखर जाते हैं ज़ख़्म कैसे भी हों कुछ रोज़ में भर जाते हैं

छोड़ कर जिस को गए थे आप कोई और था अब मैं कोई और हूँ वापस तो आ कर देखिए

बहाना ढूँढते रहते हैं कोई रोने का हमें ये शौक़ है क्या आस्तीं भिगोने का

इस शहर में जीने के अंदाज़ निराले हैं होंटों पे लतीफ़े हैं आवाज़ में छाले हैं

मुझे मायूस भी करती नहीं है यही आदत तेरी अच्छी नहीं है

उस की आँखों में भी काजल फैल रहा है मैं भी मुड़ के जाते जाते देख रहा हूँ

जिधर जाते हैं सब जाना उधर अच्छा नहीं लगता मुझे पामाल रस्तों का सफ़र अच्छा नहीं लगता

हम तो बचपन में भी अकेले थे सिर्फ़ दिल की गली में खेले थे

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