'लोग टूट जाते हैं, एक घर बनाने में'...पढ़िए बशीर बद्र के चुनिंदा शेर

Harsh Katare
Oct 28, 2024

लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में तुम तरस नहीं खाते घर जलाने में

दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे जब कभी हम दोस्त हो जाएं तो शर्मिन्दा न हों

हम भी दरिया हैं हमें अपना हुनर मालूम है जिस तरफ़ भी चल पड़ेंगे रास्ता हो जाएगा

इतनी मिलती है मेरी ग़ज़लों से सूरत तेरी लोग तुझको मेरा महबूब समझते होंगे

अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जाएगा मगर तुम्हारी तरह कौन मुझ को चाहेगा

न जी भर के देखा न कुछ बात की बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की

कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी यूँ कोई बेवफ़ा नहीं होता

ज़िंदगी तू ने मुझे क़ब्र से कम दी है ज़मीं पाँव फैलाऊँ तो दीवार में सर लगता है

यहाँ लिबास की क़ीमत है आदमी की नहीं मुझे गिलास बड़े दे शराब कम कर दे

हर धड़कते पत्थर को लोग दिल समझते हैं उम्रें बीत जाती हैं दिल को दिल बनाने में

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