'दुख अपना हम को बताना नहीं आता'...पढ़िए वसीम बरेलवी के चुनिंदा शेर

Harsh Katare
Nov 08, 2024

तुम मेरी तरफ़ देखना छोड़ो तो बताऊँ हर शख़्स तुम्हारी ही तरफ़ देख रहा है

शराफ़तों की यहाँ कोई अहमियत ही नहीं किसी का कुछ न बिगाड़ो तो कौन डरता है

वो दिन गए कि मोहब्बत थी जान की बाज़ी किसी से अब कोई बिछड़े तो मर नहीं जाता

शर्तें लगाई जाती नहीं दोस्ती के साथ कीजे मुझे क़ुबूल मिरी हर कमी के साथ

तुम आ गए हो तो कुछ चाँदनी सी बातें हों ज़मीं पे चाँद कहाँ रोज़ रोज़ उतरता है

वैसे तो इक आँसू ही बहा कर मुझे ले जाए ऐसे कोई तूफ़ान हिला भी नहीं सकता

दुख अपना अगर हम को बताना नहीं आता तुम को भी तो अंदाज़ा लगाना नहीं आता

आसमाँ इतनी बुलंदी पे जो इतराता है भूल जाता है ज़मीं से ही नज़र आता है

तुझे पाने की कोशिश में कुछ इतना खो चुका हूँ मैं कि तू मिल भी अगर जाए तो अब मिलने का ग़म होगा

अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपाएँ कैसे तेरी मर्ज़ी के मुताबिक़ नज़र आएँ कैसे

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