'हम को मिटा सके ये ज़माने में दम नहीं'...दिल में उतर जाएंगे जिगर मुरादाबादी के ये शेर

Harsh Katare
Nov 16, 2024

रग रग में इस तरह वो समा कर चले गए जैसे मुझी को मुझ से चुरा कर चले गए

नज़र मिला के मेरे पास आ के लूट लिया नज़र हटी थी कि फिर मुस्कुरा के लूट लिया

तेरी आँखों का कुछ क़ुसूर नहीं हाँ मुझी को ख़राब होना था

दिल को सुकून रूह को आराम आ गया मौत आ गई कि दोस्त का पैग़ाम आ गया

हम को मिटा सके ये ज़माने में दम नहीं हम से ज़माना ख़ुद है ज़माने से हम नहीं

हमीं जब न होंगे तो क्या रंग-ए-महफ़िल किसे देख कर आप शरमाइएगा

ये इश्क़ नहीं आसाँ इतना ही समझ लीजे इक आग का दरिया है और डूब के जाना है

दोनों हाथों से लूटती है हमें कितनी ज़ालिम है तेरी अंगड़ाई

इश्क़ जब तक न कर चुके रुस्वा आदमी काम का नहीं होता

जो तूफ़ानों में पलते जा रहे हैं वही दुनिया बदलते जा रहे हैं

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