अपनी तबाहियों का मुझे कोई ग़म नहीं...पढ़ें साहिर लुधियानवी के शेर

अपनी तबाहियों का

अपनी तबाहियों का मुझे कोई ग़म नहीं, तुम ने किसी के साथ मोहब्बत निभा तो दी.

कभी ख़ुद पे कभी

कभी ख़ुद पे कभी हालात पे रोना आया, बात निकली तो हर इक बात पे रोना आया.

अभी न छेड़ मोहब्बत के गीत

अभी न छेड़ मोहब्बत के गीत ऐ मुतरिब, अभी हयात का माहौल ख़ुश-गवार नहीं.

वैसे तो तुम्हीं ने

वैसे तो तुम्हीं ने मुझे बर्बाद किया है, इल्ज़ाम किसी और के सर जाए तो अच्छा.

ये किस मक़ाम पे पहुँचा

ये किस मक़ाम पे पहुँचा दिया ज़माने ने, कि अब हयात पे तेरा भी इख़्तियार नहीं.

दूर रह कर

दूर रह कर न करो बात क़रीब आ जाओ , याद रह जाएगी ये रात क़रीब आ जाओ.

कुछ ख़ार कम तो कर गए

माना कि इस ज़मीं को न गुलज़ार कर सके, कुछ ख़ार कम तो कर गए गुज़रे जिधर से हम.

ख़ुशी के चार झोंके

अरे ओ आसमां वाले बता इस में बुरा क्या है, ख़ुशी के चार झोंके गर इधर से भी गुज़र जाएं.

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