श्राद्ध कर्म

आमतौर पर पुरुष श्राद्ध कर्म, तर्पण और पिंडदान करते हैं, लेकिन क्या महिलाएं ये धर्म निभा सकती है. चलिए बताते हैं आपको इस बारे में गरुड़ पुराण में क्या लिखा है.

धारणा

आम तौर पर ये धारणा है कि पुरुष की श्राद्ध कर्म या पिंडदान कर सकते हैं, लेकिन ये धारणा पूरी तरह से सही नही हैं.

गरुड़ पुराण

गरुड़ पुराण में महिलाओं के हाथों श्राद्ध कर्म किए जाने की बात कही गयी है.

महिलाएं कर सकती है श्राद्धकर्म

कुछ विशेष हालातों में महिलाएं ये धर्म निभा सकती हैं.

गरुड़ पुराण में लिखा है श्लोक

गरुड़ पुराण में कुल 271 अध्याय और 18 हजार श्लोक हैं. जिनमें से कुछ में इस बारे में बताया गया है.

अध्याय 11-12-13-14

गरुड़ पुराण के 11, 12,13 और 14 संख्या के श्लोक में श्राद्ध का महत्व और कौन इसे करने का अधिकारी ये बताया गया है.

श्लोक

गरुड़ पुराण श्लोक- पुत्राभावे वधु कूर्यात, भार्याभावे च सोदन:। शिष्‍यों वा ब्राह्म्‍ण: सपिण्‍डो वा समाचरेत।। ज्‍येष्‍ठस्‍य वा कनिष्‍ठस्‍य भ्रातृ: पुत्रश्‍च: पौत्रके। श्राध्‍यामात्रदिकम कार्य पुत्रहीनेत खग:।

श्लोक का अर्थ

इस श्लोक का मतलब है कि - बड़े या छोटे बेटे या बेटी के अभाव में पत्नी या बहू श्राद्ध कर्म कर सकती है. अगर पत्नी जीवित नहीं हो तो सगा भाई, भतीजा, भांजा श्राद्ध कर सकता है.

ये भी कर सकते हैं श्राद्धकर्म

लेकिन अगर इनमे से भी कोई ना हो तो कोई शिष्य, मित्र या रिश्तेदार श्राद्ध कर्म निभा सकता है.

महिलाओं को है अधिकार

यानि की महिलाओं के पास भी श्राद्ध या पिंडदान करने का अधिकार है.

पुरुष को वरीयता

लेकिन तर्पण या श्राद्ध के लिए पहले पुरुष को ही वरीयता दी जाती है.

माता सीता ने किया था श्राद्धकर्म

वाल्मीकि रामायण के अनुसार माता सीता ने भी अपने ससुर राजा दशरथ का पिंडदान किया था.

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