त्याग ही तर्पण

पितरों के लिए, माता पिता के लिए किया गया त्याग तर्पण कहलाता है.

Anuj Kumar
Sep 29, 2023

अर्पण और तर्पण

तृप्ति हेतु किये जाने वाले अर्पण को तर्पण कहते हैं. पिंड प्राप्ति पश्चात तृप्त होकर कर्मानुसार ऊपर के लोक गमन करते हैं.

पितृलोक से आते है

मान्यता है सभी आत्मायें पितृलोक से निकलकर इस समय गया में अपने कुल परिवार के जीवित सदस्य से पिंडदान की अपेक्षा लेकर आते हैं.

पाप जरूर लगता

कर्तव्य वह कर्म है जिसको करने से पुण्य नहीं मिलता लेकिन ना करने से पाप जरूर लगता है.

भगवान के लिए समर्पण

भगवान के लिए किया गया त्याग समर्पण कहलाता है.

त्याग ही तर्पण

पितरों के लिए, माता पिता के लिए किया गया त्याग तर्पण कहलाता है.

पितरों को समर्पित मास

आश्विन कृष्ण पक्ष हमारे विधान में पितरों को समर्पित है.

पितरों से प्रार्थना

तर्पण करने के बाद पितरों से पूर्व में कर चुके गलतियों के लिए प्रार्थना करनी चाहिए, ताकि वे प्रसन्न हो जाए और आपको सुखी रहने का आशीर्वाद दें.

तृप्त करने की क्रिया

तृप्त करने की क्रिया और देवताओं, ऋषियों या पितरों को तंडुल या तिल मिश्रित जल अर्पित करने की क्रिया को तर्पण कहते हैं.

मुक्ति कर्म को श्राद्ध

पितरों के लिए श्रद्धा से किए गए मुक्ति कर्म को श्राद्ध कहते हैं.

पितृ पक्ष में तर्पण

तर्पण पितृ पक्ष में हर दिन पितरों के लिए तर्पण किया जाता है.

पितरों का तर्पण

आखिर में दक्षिण दिशा में मुख कर लें और काले तिल व कुश से पितरों का तर्पण करें.

मानव तर्पण

उत्तर दिशा में अपना मुख करके जौ और कुश से मानव तर्पण करें.

ऋषियों के लिए तर्पण

इसके बाद जौ और कुश लेकर ऋषियों के लिए तर्पण करें.

देवताओं के लिए तर्पण

तर्पण के लिए सबसे पहले आप पूर्व दिशा में मुख करके कुश लेकर देवताओं के लिए अक्षत से तर्पण करें.

तर्पण की विधि

तर्पण के समय हथेली में त्रिकुशा या तेकुशा रखना चाहिए. काय तीर्थ (ऋषि तीर्थ) से जल देना चाहिए.

तृप्त करना ही तर्पण

तृप्त या संतुष्ट करने को तर्पण कहते हैं. जिनके पिता जीवित नहीं हैं उन्हें ही पितृतर्पण का अधिकार है.

तर्पण दक्षिण दिशा में

दक्षिण दिशा की ओर मुख करके मोटक(मोड़ा कुश) से पितृतीर्थ से दिव्य पितृ तर्पण एवं पितृ तर्पण करना चाहिए.

श्राद्ध में पितरों के निमित्त तर्पण

श्राद्ध में पितरों के निमित्त तर्पण, पिंडदान करते समय इस मंत्र का जाप करें. ॐ पितृ देवतायै नम: के साथ ‘ओम आगच्छन्तु में पितर एवं ग्रहन्तु जलान्जलिम’.

आत्माएं पितृलोक से आते

सभी आत्माएं पितृलोक से निकलकर इस समय गया में अपने कुल परिवार के जीवित सदस्य से पिंडदान की अपेक्षा लेकर आते हैं.

संसार में तीन लोक

पितृलोक के ऊपर देवलोक, उसके ऊपर ब्रह्मलोक, उसके ऊपर नारायण लोक है.

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