जैसे आम जीवन में काम को करने के लिए लोगों के अलग अलग पद तय किए जाते हैं वैसे ही सृष्टि के पालनकर्ता श्रीहरि भी अपने काम करवाने के लिए सहायकों का पद तय करते हैं.
इसी के तहत श्रीहरि के मुख्य रूप से 16 पार्षद यानी सहायक हैं जो समाज को सार्थक संदेश देते हैं. इसके लिए समय समय पर उन्हें पृथ्वी पर श्रीहरि भेजते हैं.
माना जाता है कि उनमें से कुछ तो पृथ्वी पर भ्रमण भी हैं और श्रीहरि के भक्तों को समस्याओं और संकटों से उबारते हैं. धर्म पथ दिखाते हैं.
श्रीहरि के पार्षद विश्वक्सेन, जय, विजय, प्रबल व बल जिन्हें लेकर मान्यता है कि ये भक्तों का मंगल करते हैं इके लिए श्रीहरि के प्रति शत्रुता का भाव लेकर उनकी लीला में भाग लेते हैं.
श्रीहरि के ये पार्षद 16 पार्षद हैं- जय, विजय, विष्वक्सेन, प्रबल, बल, नन्द, सुनन्द, सुभद्र, भद्र, चण्ड, प्रचण्ड, कुमुद, कुमुदाक्ष, शील, सुशील और सुषेण
श्रीहरि के प्रति शत्रुता का भाव रखने वालों में कुंभकर्ण व रावण का नाम आता है जो श्रीहरि के जय व विजय नाम के पार्षद हैं. नन्द, सुनन्द, सुभद्र,भद्र भी पार्षद है जो रोगों को नष्ट करते हैं.
चंड, प्रचंड, कुमुद व कुमुदाक्ष भी पार्षद है जो श्रीहरि के भक्तों की सेवा परम विनीत व अति कृपालुता के साथ करते हैं. शील, सुशील और सुषेण नाम के पार्षद श्रीहरि के भावुक भक्तों का विशेष ध्यान रखते हैं.
भगवान के प्रधान पार्षद श्री विश्वक्सेन हैं. जिस स्थान पर हरि बोल, नारायण-नारायण का जाप दोता है वहां भगवान के पार्षद पहुंच जाते हैं.
श्रीहरि की सेवा करने में ये सोलह पार्षद कुशल हैं, इन पार्षदों की की सेवा करके नारायण के पास मनुष्य जल्दी पहुंच सकता है.
पौराणिक पात्रों की यह कहानी धार्मिक मान्यताओं और ग्रंथों में किए गए उल्लेख पर आधारित है. इसके एआई द्वारा काल्पनिक चित्रण का जी यूपीयूके हूबहू समान होने का दावा या पुष्टि नहीं करता.