सहारनपुर के फुलवारी आश्रम में सबसे पुराना अखाड़ा है. इस अखाड़े में तैयार पहलवानों ने कुश्ती में जीत हासिल कर देश-विदेश में जिले का नाम रोशन किया है.
इस अखाड़े की शुरुआत करीब दो सौ वर्ष पहले हुई थी. सैंकड़ों लोगों ने यहां से कुश्ती के दांव पेंच सीखकर अपनी पहचान बनाई है. जिसकी चर्चा हर ओर होती है.
इस अखाड़े में पहलवानी करने वाले जगदीश गुरु ने अंग्रेजी हुकूमत में रुस्तम ए हिन्द नाम का पुरस्कार जीता था. अखाड़े की स्थापना के समय से ही यहां ये पुरस्कार बनाया गया था. जो आज भी अस्तित्व में है.
रिपोर्ट्स की मानें तो कुश्ती में जीत हासिल कर अखाड़े का नाम रोशन करने वाले पहलवान को रुस्तम ए हिन्द पुरस्कार से नवाजा जाता है.
आज भी इस अखाड़े में सैकड़ो युवा कुश्ती के दांव पेच सीख रहे हैं. युवाओं का कहना है कि पहलवानी का मूल मंत्र आचार, विचार और व्यवहार होता है.
कहते हैं अगर पहलवानी करने वाले व्यक्ति का आचरण नेक हो, विचारों में शुद्धता हो और व्यवहार में मिठास हो, तो वह कुश्ती ही नहीं किसी भी क्षेत्र में अलग पहचान बना सकता है.
रिपोर्ट्स की मानें तो यहां के पहलवान बाजार में मिलने वाले पॉउडर और अन्य चीजों का खाने में इस्तेमाल नहीं करते, बल्कि देसी जड़ी बूटियां व ड्राई फ्रूट्स खाते हैं.
अखाड़े के पहलवान अधिकतर जड़ी बूटियां और अन्य चीजों को सिल बट्टे पर पीसकर तैयार करते हैं और फिर इसे खाने में इस्तेमाल करते हैं.
खाने की गुणवत्ता पहलवानों की सेहत के लिए अच्छी होती है. ये अखाड़ा पारम्परिक रूप में आज भी पहलवानों के लिए अस्तित्व में है.
इसकी विषय सामग्री का जी यूपीयूके हूबहू समान होने का दावा या पुष्टि नहीं करता.