उसे भुलाया तो अपना ख़याल भी न रहा.. पढ़ें अहमद महफूज के चुनिंदा शेर

Shailjakant Mishra
May 08, 2024

अब इस मकाँ में नया कोई दर नहीं करना ये काम सहल बहुत है मगर नहीं करना

मिलने दिया न उस से हमें जिस ख़याल ने सोचा तो उस ख़याल से सदमा बहुत हुआ

कहाँ किसी को थी फ़ुर्सत फ़ुज़ूल बातों की तमाम रात वहाँ ज़िक्र बस तुम्हारा था

यहीं गुम हुआ था कई बार मैं ये रस्ता है सब मेरा देखा हुआ

देखना ही जो शर्त ठहरी है फिर तो आँखों में कोई मंज़र हो

उसे भुलाया तो अपना ख़याल भी न रहा कि मेरा सारा असासा इसी मकान में था

किसी से क्या कहें सुनें अगर ग़ुबार हो गए हमीं हवा की ज़द में थे हमीं शिकार हो गए

उस से मिलना और बिछड़ना देर तक फिर सोचना कितनी दुश्वारी के साथ आए थे आसानी में हम

हम को आवारगी किस दश्त में लाई है कि अब कोई इम्काँ ही नहीं लौट के घर जाने का

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