उत्तर भारत के अलग-अलग इलाकों में कोई न कोई किला मौजूद है. जनश्रुति या किवदंति के आधार पर हम उसे किले की कोई ना कोई पहचान बनाते हैं.
यूपी का जनपद अलीगढ़ ताला और तालीम के लिए जाना जाता है. यह शहर कई ऐतिहासिक धरोहर को संजोए हुए है. जिसमें से एक अलीगढ़ का किला भी है.
इस किले की नींव 524-25 में इब्राहिम लोधी के कार्यकाल में रखी गई थी.
1759 में किले का पुनर्निर्माण माधव राव सिंधिया के जमाने में कराया गया था. इसकी जिम्मेदारी फ्रेंच कमांडेंट काउंट बेनोइट और कुलीयर पेरोन को मिली. इसमें फ्रेंच इंजीनियरों की भी मदद ली गई.
किले की कमान मीर सादत अली के हाथों में थी. चार सितंबर 1803 में ब्रिटिश जनरल लेक ने आक्रमण करके किले पर कब्जा कर लिया था. अंग्रेजों नेइसे अधीन किया तब भी यह अलीगढ़ का किला ही कहलाया,
युद्ध में मारे गए ब्रिटिश अफसरों के नाम यहां के शिलालेख में आज भी दर्ज हैं. कालांतर में अलीगढ़ किला 'बौना चोर का किला' हो गया.
सन 1803 में अलीगढ़ जंग के दौरान मराठों ने इस किले को अपने कब्जे में ले लिया था, जिसके कारण इस किले की महत्वता और बढ़ गई थी.
इसके बाद 18वीं शताब्दी में यह पूरा क्षेत्र अवध के नवाब के अधीन चला गया.उस समय के कमांडेंट नजव खान ने इस साबितगढ़ का नाम अलीगढ़ रख दिया.
अलीगढ़ का यह किला पटवारी नागला नामक स्थान पर स्थित है. अलीगढ़ किले को बौना चोर का किला कहा जाता है
मुगलकाल और फिर ब्रिटिश काल में भी यहां कड़ी सुरक्षा के बावजूद खूब सामान चोरी होता था. ऐसा कहा जाता है कि यहां कोई बौना चोर है, जो सबकी आंखों में धूल झोंककर सामान पार कर देता है.
इतिहासकारों के अनुसार इस किले को बोना चोर का किला कहना महज किंवदंती है. इसका कोई प्रमाण नहीं है कि बोना चोर का कोई अस्तित्व था. बोना चोर का किला कहना लोगों में सिर्फ भ्रांतियां हैं.
एएमयू की देखरेख में होने के कारण अब इसे एएमयू किला भी कहने लगे हैं.
स्पष्ट कर दें कि यह AI द्वारा निर्मित महज काल्पनिक फोटो हैं, जिनको बॉट ने कमांड के आधार पर तैयार किया है.